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धवला पुस्तक 6
है।।18।।
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कर्मों का जघन्य स्थिति बन्ध
बारस य वेदणिज्जे गामा- गोदे य अट्ठ य मुहुत्ता। ट्ठिदिबंधो दु जहण्णो भिण्णमुहुत्तं तु सेसाणं ।।19।। वेदनीय का बारह मुहूर्त, नाम व गोत्र का आठ मुहूर्त तथा शेष कर्मों का अन्तर्मुहूर्त मात्र जघन्य स्थिति बन्ध होता है।।19॥
ओवट्ठणा जहण्णा आवलिया ऊणिया तिभागेण । एसा ट्ठिदिसु जहण्णा तहाणुभागेसणंतेसु । । 20।।
यहाँ अपकर्षण में जघन्य अतिस्थापना का प्रमाण त्रिभाग से हीन आवली मात्र है। यह जघन्य अतिस्थापना का प्रमाण स्थितियों के विषय में ग्रहण करना चाहिये। अनुभागविषयक जघन्य अपवर्तना अनन्त स्पर्धकों से प्रतिबद्ध है। अर्थात् जब तक अनन्त स्पर्धकों की अतिस्थापना नहीं होती तब तक अनुभागविषयक अपकर्षण की प्रवृत्ति नहीं होती।।20।।
संकामे दुक्कड्डदि जे असे ते अवट्ठिदा होंति । आवलियं से काले तेण परं होंति भजिदव्वा।।21।।
जिन कर्मप्रदेशों का संक्रमण अथवा उत्कर्षण करता है वे आवलीमात्र काल तक अवस्थित अर्थात् क्रियान्तरपरिणाम के बिना जिस प्रकार जहाँ निक्षिप्त हैं। उसी प्रकार ही वहाँ निश्चल भाव से रहते हैं। इसके पश्चात् उक्त कर्मप्रदेश वृद्धि, हानि एवं अवस्थानादि क्रियाओं से भजनीय हैं।।21।।
ओकड्डदि जे अंसे से काले ते च होंति भजिदव्वा । वड्ढीए अवट्ठाणे हाणीय संकमे उदए।।22।। जिन कर्माशों का अपकर्षण करता है वे अनन्तर काल में स्थित्यादि