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धवला उद्धरण
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पुद्गल विपाकी नामकर्म प्रकृतियां पंच य छ ति य छप्पं च दोण्णि पंच य हवंति अठेव। सरीरादीपस्संता पयडीओ आणुपुव्वीए।।1।। अगुरुलहु-परूवघादा आदाउज्जोव णिमिणणामं च। पत्तेय-थिर-सुहेदरणामाणि य पोग्गलविवागा।।2।।
शरीर से लेकर स्पर्श पर्यन्त अर्थात् शरीर, संस्थान, अंगोपांग, संहनन, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये अनुक्रम से पाँच, छह, तीन, छह, पाँच, दो, पाँच और आठ प्रकृतियाँ, अगुरुलघु, परघात, उपघात, आतप, उद्योत, निर्माण, प्रत्येक व साधारण, स्थिर व अस्थिर तथा शुभ व अशुभ, ये नाम प्रकृतियाँ पुद्गलविपाकी हैं।।1-2।।
जीव विपाकी नामकर्म प्रकृतियां गदिजादी उस्सासो दोण्णि विहाया तसादितियजुगलं। सभगादीचदजगलं जीवविवागा य तित्थय।।3।।
गति, जाति, उच्छ्वास, दो विहायोगतियाँ, त्रस आदिक तीन युगल, सुभग आदिक चार युगल और तीर्थकर, ये प्रकृतियाँ जीवविपाकी हैं।।।3।।
क्षेत्र विपाकी नामकर्म प्रकृतियां चत्तारि आणुपुव्वी खेत्तविवागा त्ति जिणवरुद्दिट्ठा। णीचुच्चागोदाणं होदि णिबंधो दु अप्पाणे।।4।।