Book Title: Dhavala Uddharan
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ 283 167 250 गाथानुक्रमणिका नवनागसहस्राणि न सामान्यत्यात्मननोदेति नानात्मतामप्रजहत् नित्यत्वैकान्तपक्षेऽपि निमेषाणां सहस्राणि निरस्यति परस्यार्थ 19/9 10/15 5/3 2/15 11/4 80 247 111 3/7 151 260 86 155 218 171 18 190 146 207 198 पउमदलगब्भउरं पक्खेवरासिगुणिदो पच्चय-सामित्तविही पच्चाहरित्तु विसएहि पच्छा पावाणयरे पञ्चशतनरपतीनाम् पढद्यमपुढवीए चदुरो पढमक्खो अंतगओ पढमक्खो अंतगओ पढमिच्छ सलागगुणा पढमो अबंधयाणं पढमो अरहंताणं पढमो अरहताणं पढमं पयडिपमाणं पणगादी दोहि जुदा पणवणा इर वण्णा पणिदरसभोयणेण य पणुवीसं असुराणं पणुवीसं असुराणं पणुवीसं जोयणाणि पण्णट्ठी च सहस्सा 1/16 30/3 4/8 29/13 36/9 40/1 123/9 11/7 2/12 20/10 75/9 78/1 78/9 9/7 127/9 22/8 226/2 18/4 1/7 8/9 38/3 180 28 181 146 191 159 12 104 151 164

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302