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धवला पुस्तक 9
183 निक्षेप का वर्गीकरण णामट्ठवणादवियं एसो दव्वाट्ठियस्स णिक्खवो। भावो दु पज्जवट्ठियपरूवणा एस परमत्थो।।89।।
नाम स्थापना और द्रव्य, यह द्रव्यार्थिक नय का निक्षेप है, किन्तु भाव निक्षेप पर्यायार्थिक नय का निक्षेप है, यह परमार्थ सत्य है।।89।।
पर्यायार्थिक और द्रव्यार्थिक नय का स्वरूप उप्पज्जति वियति य भावा णियमेण पज्जवणयस्स। दव्वट्ठियस्स सव्वं सदा अणुप्पण्णमविणठें।।90।।
पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पदार्थ नियम से उत्पन्न होते हैं और नष्ट भी होते हैं, किन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सब पदार्थ सदा उत्पाद और विनाश से रहित हैं।।90।।
आगम का स्वरूप पूर्वापरविरुद्धादेयं पे तो दोषसंहते ।। द्योतकः सर्वभावानामाप्तव्याहृतिरागमः।।91।।
जो आप्तवचन पूर्वापरविरुद्ध आदि दोषों के समूह से रहित और सब पदार्थों का प्रकाशक है वह आगम कहलाता है।।91।।
स्वाध्याय की निषिद्ध अवस्था यमपठहरव श्रवणे रुधिरसार्वेऽगतोऽतिचारे च। दातृष्वशुद्धकायेषु भुक्तवति चापि नाथ्येयम्।।92।।
यमपटह का शब्द सुनने पर, अंग से रक्तस्राव के होने पर, अतिचार के होने पर तथा दाताओं के अशुद्धकाय होते हुए भोजन कर लेने पर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।।92।।