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धवला उद्धरण
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निक्षेप की विशेषता अवगयणिवारण पयदस्स परूवणाणिमित्तं च। संसयविणासणठें तच्चत्थवहारणटुं च।।1।।
अप्रकृत का निवारण करने के लिये, प्रकृत की प्ररूपणा करने के लिये, संशय को नष्ट करने के लिये और तत्त्वार्थ का निश्चय करने के लिये निक्षेप किया जाता है।।1।।
काल के भेदों का स्वरूप कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो। दोण्णं एस सहाओ वालो खणभंगुरो णियदो।।1।।
समयादिरूप व्यवहारकाल चूकि जीव व पुद्गल के परिणमन से जाना जाता है, अतः वह उससे उत्पन्न कहा जाता है और जीव व पुद्गल का परिणाम चकि द्रव्यकाल के होने पर होता है. अत एव वह द्रव्यकाल से उत्पन्न कहा जाता है। इनमें व्यवहारकाल क्षणक्षयी और निश्चयकाल अविनश्वर है।।।1।।
काल का स्वरूप ण य परिणमइ सयं सो ण य परिणामेइअण्णमण्णेसि। विविहपरिणामियाणं हवइ हु हेऊ सयं कालो।।2।।
वह काल न स्वयं परिणमता है और न अन्य पदार्थ को अन्य स्वरूप से परिणमाता है, किन्तु स्वयं अनेक पर्यायों में परिणत होने वाले