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धवला उद्धरण
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पल्य का परिमाण योजनं विस्तृत पल्यं यच्च योजनमुच्छ्रि तम्। आसप्ताहःप्ररूढानां केशानां तु सुपूरितम्।।29।। ततो वर्षशते पूणे एक के रोम्णि उद्धृते । क्षीयते येन कालेन तत्पल्योपममुच्यते ।।30।।
एक योजन व्यास वाला और एक योजन ऊँचा पल्य अर्थात् कुशूल लेकर उसे एक दिन से लेकर सात दिन तक के उगे हुए केशों से भर दे। अनन्तर पूरे सौ-सौ वर्ष होने पर एक-एक रोम निकाले, जितने काल में वह खाली होगा उतने काल को पल्योपम कहते हैं।।29-30।।
सागर और अवसर्पिणी का परिमाण कोटिकोट्यो दशैतेषां पल्यानां सागरोपमम्। सागरोपमकोटीनां दश कोट्योऽवसर्पिणी।।31।।
इन दस कोडाकोड़ी पल्यों का एक सागरोपम होता है और दस कोड़ाकोड़ी सागरोपमों का एक अवसर्पिणी काल होता है।।1।।
द्रव्य का स्वरूप नयो पनये कान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः। अविभ्राड्भावसंबन्धो द्रव्यमेकमनेकधा।।32।।
नैगमादि नयों के और उनकी शाखा-उपशाखा रूप उपनयों के विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायों का कचित् तादात्म्य रूप जो समुदाय है उसे द्रव्य कहते हैं। वह कथंचित् एक रूप है और कथंचित् अनेक रूप है।।32॥