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धवला पुस्तक 10
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घन को आठ से और फिर उ त्तर से गुणा करके उसमें द्विगुणित आदि में से उत्तर को कम करके जो राशि प्राप्त हो उसके वर्ग को जोड़ दे। फिर इसके वर्गमूल में से पहले के प्रक्षेप के वर्गमूल को कम करके शेष रही राशि में द्विगुणित उत्तर का भाग देने पर गच्छ का प्रमाण आता है।।12-14।।
एकोत्तरपदवृद्धो रूपाघे र्भाजितश्च पदवृद्धः । गच्छस्सं'पातफलं समाहतं सन्निपातफलम् ।।15।।
एक को आदि लेकर एक अधिक क्रम से पद प्रमाण वृद्धि को प्राप्त संख्या में अन्त में स्थापित एक को आदि लेकर पद प्रमाण वृद्धिंगत संख्या का भाग देने पर गच्छ के बराबर संपातफल अर्थात् प्रत्येक भंग का प्रमाण आता है। इसको आगे-आगे स्थापित संख्याओं से गुणत करने पर सन्निपातफल अर्थात् द्विसंयोगी आदि के भंगों का प्रमाण होता है।।15।।
गुणश्रेणि निर्जरा
सम्मत्तप्पत्ती वि य सावय- विरदे अनंतकम्मंसे । दंसणमोहक्खए कसायउवसामए य उवसंते।।16।। खवर य खीणमोहे जिणे य णियमा भवे असंखेज्जा । तव्विवरीदो कालो संखेज्जगुणाए सेडीए । । 17 ।।
सम्यक्त्वोत्पत्ति अर्थात् प्रथमोपशम सम्यक्त्व की उत्पत्ति, श्रावक (देशविरत), विरत (महाव्रती), अनन्त कर्मांश अर्थात् अनन्तानुबन्धी का विसंयोजन करने वाला, दर्शन मोह का क्षय करने वाला, चारित्र मोह का उपशम करने वाला, उपशान्त मोह, चारित्र मोह का क्षपण करने वाला, क्षीण मोह और जिन, इनके नियम से उत्तरोत्तर असंख्यातगुणित श्रेणि रूप से कर्म निर्जरा होती है, किन्तु निर्जरा का काल उससे विपरीत संख्यातगुणित श्रेणि रूप से है, अर्थात् उक्त निर्जराकाल जितना जिन