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धवला उद्धरण
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पंचनमस्कार मंत्र का माहात्म्य एसो पंचणमोक्कारी सव्वपावप्पणासओ। मंगले सु अ सव्वे सु पढम होदि मंगल।।1।।
यह पंचनमस्कार मंत्र सर्व पापों का नाश करने वाला और सब मंगलों में प्रथम मंगल है।।1।।
मंगलाचरण का कारण/फल आदी मंगलकरणं सिस्सा लहू पारवा हबंतु त्ति। मज्झे अव्वोच्छित्ती विज्जा विज्जाफलं चरिमे।।2।।
शास्त्र के आदि में मंगल इसलिये किया जाता है कि शिष्य शीघ्र ही शास्त्र के पारगामी हों। मध्य में मंगल करने से निर्विघ्न कार्य परिसमाप्ति और अन्त में उस के करने से विद्या व विद्या के फल की प्राप्ति होती है।।।2।।
ध्यान के आलम्बन आलंबणेहि भरिओ लोगो झाइदुमणस्स खवयस्स। जं जं मणसा पस्सइ तं तं आलंबणं होई।।3।।
ध्यान में मन लगाने वाले क्षपक के लिये यह लोक ध्यान के आलम्बनों से परिपूर्ण है। ध्यान में ध्याता जो-जो मन से देखता है वह-वह आलम्बन हो जाता है।।3।।