________________
धवला पुस्तक 9
173 वक्तव्यता तीन प्रकार और अर्थाधिकार अनेक प्रकार है।।44।।
निक्षेप के प्रकार जत्थं बहु जाणेज्जो अवरिमियं तत्थ णिक्खिवे णियमा। जत्थ य बहुंण जाणदि चउट्ठयं णिक्खिवउ।।45।।
वह निक्षेप अनेक प्रकार है, क्योंकि जहाँ बहुत ज्ञातव्य हो वहाँ नियम से अपरिमित निक्षेपों का प्रयोग करना चाहिये और जहाँ बहुत को नहीं जानना हो वहाँ चार निक्षेपों का उपयोग करना चाहिए।।45।।
क्षायिक ज्ञान का स्वरूप क्षायिकमेकमनंतं त्रिकालसर्वार्थयुगपविभासम्। निरतिशयामत्ययच्युतमव्यवधानं जिनज्ञानम्।।46।। इति
जिन भगवान् का ज्ञान क्षायिक, एक अर्थात् असहाय, अनन्त, तीनों कालों के सब पदार्थों को एकसाथ प्रकाशित करने वाला, निरतिशय, विनाश से रहित और व्यवधान से विमुक्त है।।46।।
ईहा का लक्षण अवायावयवोत्पत्तिस्संशयावयवच्छिदा। सम्यनिर्णयपर्यंता परीक्षहेति कथ्यते।।47।।
संशय के अवयवों को नष्ट करके अवाय के अवयवों को उत्पन्न करने वाली जो भले प्रकार निर्णय पर्यन्त परीक्षा होती है वह ईहा प्रत्यय कहा जाता है।।47।।
चत्तारि घणुसयाई चउसट्ठ सयं च तह य घणुहाणं। पासे रसे य गंधे दुगुणा दुगुणा असण्णि त्ति।।48।।
चार सौ धनुष, चौंसठ धनुष तथा सौ धनुष प्रमाण क्रम से एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवों का स्पर्श, रस एवं गन्ध विषयक क्षेत्र है।