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धवला पुस्तक 9
169 पर देवेन्द्र एवं दानवेन्द्र जिनेन्द्रदेव की महिमा करते हैं।।24।।
इम्मिस्से वसप्पिणीए चउत्थकालस्स पब्छिमे भाए। चोत्तीसवाससे से किंचिविसे सूणकालम्मि।।25।।
इस अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के अन्तिम भाग में कुछ कम चौंतीस वर्ष प्रमाण काल के शेष रहने पर (धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई)।।25।।
भगवान् महावीर का गर्भावतरण सुरमहिदो च्युदकप्पे भोगं दिव्वाणुभागमणुभूदो। पुप्फुत्तरणामादो विमाणदो जो चुदो संतो।।26।। बाहत्तरिवासणि य थोवविहूणाणि लद्धपरमाऊ। आसाढजोण्णपक्खे छट्ठीए जोणिमुवयादो।।27।।
वर्धमान भगवान् अच्युत कल्प में देवों से पूजित हो दिव्य प्रभाव से संयुक्त भोगों का अनुभव कर पुनः पुष्पोत्तर नामक विमान से च्युत होकर कुछ कम बहत्तर वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट आयु को प्राप्त करते हुए आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन योनि को प्राप्त हुए अर्थात् गर्भ में" आये।।।26-27।।
भगवान् महावीर का जन्म कुंडपुरपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले। तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए।।28।। अच्छित्ता णवमासे अट्ठ य दिवसे चइत्तसियपक्खे। ते रसिए रत्तीए जादुत्तरफग्गुणीए दु।।29।।
तत्पश्चात् कुण्डलपुर रूप उत्तम पुर के ईश्वर सिद्धार्थ क्षत्रिय के नाथ कुल में सैकड़ों देवियों से सेव्यमान त्रिशला देवी के (गर्भ में) नौ