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धवला पुस्तक 7
147 जितने वां उदयस्थान जानना अभीष्ट हो उसी स्थान संख्या को पिंडमान से विभक्त करे। जो शेष रहे उसे अक्षस्थान समझे। पुनः लब्ध में एक अंक मिलाकर दूसरे पिंड-मानकर भाग देवे और शेष को अक्षस्थान समझ। जहाँ भाग देने से कुछ न बचे वहाँ अन्तिम अक्षस्थान समझे और फिर लब्ध में एक अंक न मिलावे। इस प्रकार समस्त पिडों द्वारा विभाजन क्रिया करने से उद्दिष्ट स्थान निकल आता है।।12।।
संठाविदूण रूवं उवरीदो संगुणित्तु सगमाणे। अवणेज्जोणकिदयं कुज्जा पढमं तियं जाव।।13।।
एक अंक को स्थापित करके आगे के पिंड का जो प्रमाण हो उससे गुणा करे और लब्ध में से अनंकित को घटा दे। ऐसा प्रथम पिंड के अंत तक करता जावे। इस प्रकार उद्दिष्ट निकल आता है।।13।।
घातिया कर्मों की अनुभाग शक्ति सव्वारणीयं पुण उक्कस्सं होदि दारुगसमाणे। हेट्ठा देसावरणं सव्वावरणं च उवरिल्लं।।14।।
घातिया कर्मों की जो अनुभाग शक्ति लता, दारु, अस्थि और शैल समान कही गयी है उसमें दारुतुल्य से ऊपर अस्थि और शैल तुल्य भागों में उत्कृष्ट सर्वावरणीय शक्ति पाई जाती है, किन्तु दारुसम भाग के निचले अनन्तिम भाग में (वह उससे नीचे सब लतातुल्य भाग में) देशावरण शक्ति है तथा ऊपर के अनन्त बहुभागों में सर्वावरण शक्ति है।।14।।
देशघाती कर्म णाणावरणचदुक्कं दंसणतिगमतराइगा पंच। ता होंति देसघादी संजलणा णोकसाया य।।15।।