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धवला उद्धरण
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निक्षेप का प्रयोजन अपगयणिवारणट्ठ पयदस्स रूवणाणिमित्तं च। संसयविणासणठं तच्चत्थवधारणळं च।।1।।
अप्रकृत के निवारण करने के लिये, प्रकृत के प्ररूपण करने के लिये और तत्त्वार्थ के अवधारण करने के लिये निक्षेप किया जाता है।।1।।
द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नय प्ररूपणा के विषय णामं ठवणा दवियं ति एस दव्वट्ठियस्स णिक्खेवो। भावो दु पज्जवढियपरूवणा एस परमत्थो।।2।।
नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीन निक्षेप द्रव्यार्थिक नय की प्ररूपणा के विषय हैं और भाव निक्षेप पर्यायार्थिक नय की प्ररूपणा का विषय है। यही परमार्थ सत्य है।।2।।
नोआगम द्रव्य क्षेत्र एवं नोक्षेत्र खेत्तं खलु आगासं तव्वदिरित्तं च होदि णोखत्तं। जीवा य पोग्गला वि य धम्माधम्मत्थिया कालो।।3।।
आकाश द्रव्य नियम से तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यक्षेत्र है और आकाश द्रव्य के अतिरिक्त जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा कालद्रव्य नोक्षेत्र कहलाते हैं।।3।।
आगासं सपदेसं तु उड्ढाधो तिरिओ वि य। खत्तलोगं वियाणीहि अणंत जिण-देसिदं ।।4।।