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धवला उद्धरण
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उत्पन्न हुआ और मरा है।।24।।
भव परिवर्तन णिरआउआ जहण्णा जाव दु उवरिल्लओ दु गेवज्जो। जीवो मिच्छत्तवसा भवट्ठिदिं हिंडिदो बहुसो।।25।।
भव परिवर्तनरूप संसार में भ्रमण करता हुआ यह जीव मिथ्यात्व के वश से जघन्य नारकायु से लगाकर तिर्यंच, मनुष्य और उपरिम ग्रैवेयक तक की भवस्थिति को बहुत बार प्राप्त हो चुका है।25।।
भाव परिवर्तन सव्वासि पगदीणं अणुभाग-पदे सबंधठाणाणि। जीवो मिच्छत्तवसा परिभमिदो भावसंसारे।।26।।
यह जीव मिथ्यात्व के वशीभूत होकर भाव परिवर्तनरूप संसार में परिभ्रमण करता हुआ सम्पूर्ण प्रकृतियों के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध स्थानों को अनेक बार प्राप्त हुआ है।।26।।
परियट्टिदाणि बहुसो पंच वि परियट्रिणाणि जीवेण। जिणवयणमलभमाणेण दीदकाले अणंताणि।।27।।
जिन-वचनों को नहीं पा करके इस जीव ने अतीत काल में पाँचों ही परिवर्तन पुनः पुनः करके अनन्त बार परिवर्तित किये हैं।।27।।
जह गेण्हइ परियटै पुरिसो अच्छादणस्स विविहस्स। तह पोग्गलपरियट्टे गेण्हइ जीवो सरीराणि।।28।।
जिस प्रकार कोई पुरुष नाना प्रकार के वस्त्रों के परिवर्तन को ग्रहण करता है अर्थात् उतारता है और पहनता है, उसी प्रकार से यह जीव भी पुद्गल परिवर्तन काल में नाना शरीरों को छोड़ता और ग्रहण करता है।28।।