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धवला उद्धरण
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इति शब्द के अर्थ हेतावेवम्प्रकारादो व्यवच्छेदे विपर्यये। प्रादुर्भावे समाप्तो च इतिशब्दं विदुर्बुधाः।।5।।
हेतु, एवं, प्रकार-आदि, व्यवच्छेद, विपर्यय, प्रादुर्भाव और समाप्ति के अर्थ में 'इति' शब्द को विद्वानों ने कहा है।।5।।
द्रव्य का स्वरूप नयो पनये कान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः। अविभाड् भावसम्बन्धी द्रव्यमेकमनेकधा।।6।।
जो नैगम आदि नय और उनके भेद-प्रभेद रूप उपनयों के विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायों का अभिन्न सम्बन्ध रूप समुदाय है, उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य कथंचित् एक रूप और कथंचित् अनेक रूप है।।6।।
जस्सोदएण जीवो सुहं व दुक्खं व दुविहमणुभवइ।
तस्सोदयक्खएण दु सुह-दुक्खविवज्जिओ होइ।।7।। जिसके उदय से जीव सुख और दुःख इन दोनों का अनुभव करता है, उसके उदय का क्षय होने से वह सुख और दुख से रहित हो जाता है।।7।।
प्रतिषेधयति समस्तं प्रसक्तमर्थ तु जगति नोशब्दः। स पुनस्तदवयवे वा तस्मादर्थान्तरे वा स्यात्।।8।।
जगत् में 'न' यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थ का तो प्रतिषेध करता है, किन्तु वह प्रसक्त अर्थ के अवयव अर्थात् एकदेश में अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है अर्थात् उसका बोध कराता है।।8।। भावस्तत्परिणामो द्विप्रतिषेधस्तदे क्यगमनार्थः। नो तद्देशविशेषप्रतिषेधोन्यः स्व-परयोगात्।।9।।