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धवला उद्धरण
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को छह मुहूर्त जाते हैं और कभी रात्रि को छह मुहूर्त जाते हैं।।16।।
तिथियाँ और उनके देवता नन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा च तिथयः क्रमात्। देवताश्चन्द्रसूर्येन्द्रा आकाशो धर्म एव च।।17।।
नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा, इस प्रकार क्रम से पाँच तिथियाँ होती हैं। इनके देवता क्रम से चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, आकाश और धर्म होते हैं।।।17।।
पुद्गल परिवर्तन सव्वे वि पोग्गला खलु एग्गे भुत्तुज्झिदा हु जीवेण। असई अणंतत्तो पोग्गलपरियट्टसंसारे।।18।।
इस पुद्गल परिवर्तन रूप संसार में समस्त पुद्गल इस जीव ने एक-एक करके पुनः पुनः अनन्त बार भोग करके छोड़े हैं।।18।।
पुद्गल परमाणुओं की सादिता, अनादिता एवं उभयता एयक्खोत्तो गाढं सव्वपदे सेहि कम्मणो जोग्ग। बंधाइ जहुत्तहेदू सादियमध णादियं चावि।।19।।
यह जीव एक क्षेत्र में अवगाढरूप से स्थित और कर्मरूप परिणमन के योग्य पुद्गल-परमाणुओं के यथोक्त (आगमोक्त मिथ्यात्व आदि) हेतुओं से सर्व प्रदेशों के द्वारा बांधता है। वे पुद्गल परमाणु सादि भी होते हैं, अनादि भी होते हैं और उभयरूप भी होते हैं।।19।।
सुहमट्ठिदिसंजुत्तं आसण्णं कम्मणिज्जरामुक्कं। पाएण एदि गहणं दव्वमणिहिट्ठसंठाण।।20।।
जो कर्म पुद्गल पहले बद्धावस्था में सूक्ष्म अर्थात् अल्प स्थिति से संयुक्त थे। अतएव निर्जरा द्वारा कर्मरूप अवस्था से मुक्त अर्थात् रहित