________________
धवला उद्धरण
56 की रेखा के समान, धूलिरेखा के समान और जलरेखा के समान। ये चारों ही क्रोध क्रम से नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में उत्पन्न कराने वाले होते हैं।।174।।
मान के प्रकार सेलट्ठि-कट्ठ-वेत्तं णियभेएणणुहरंतओ माणो। णारय-तिरिय-णरामर-गइ-विसयुप्पायओ कमसो।।175।।
मान चार प्रकार का है- पत्थर के समान, हड्डी के समान, काठ के समान तथा बेत के समान। ये चार प्रकार के मान क्रम से नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति के उत्पादक हैं।।175।।
माया के प्रकार बेलुवमूलोरब्भय - सिंगे गोमुत्तण खोरप्पे। सरिसी माया णारय-तिरिय-णरामरेसु जणइ जि।।176।।
माया चार प्रकार की है- बांस की जड़ के समान, मेढे के सींग के समान, गोमूत्र के समान तथा खुरपा के समान। यह चार प्रकार की माया क्रम से जीव को नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में ले जाती है।।176।।
लोभ के प्रकार किमिराय-चक्क-तणु-मल-हरिद-राएण सरिसओ लोहो। णारय-तिरिक्ख-माणुस-देवेसुप्पायओ कमसो।।177।।
लोभ चार प्रकार का है- क्रिमिराग के समान, चक्रमल के समान, शरीर के मल के समान और हल्दी के रंग के समान। यह क्रम से नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति का उत्पादक है।।177।।