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धवला उद्धरण
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पर जो लब्ध आवे उसमें से प्रचय का आधा घटा देने पर और फिर स्वकीय आदि प्रमाण को इसमें जोड़ देने पर उत्पन्न राशि के पुनः गच्छ से गुणित करने पर उपशमक और क्षपकों का प्रमाण आता है।।44।।
उपशमकों के प्रमाण में मतान्तर
तिसदं वदति केइं चउरुत्तरमत्थपंचयं केई | उवसामगेसु एदं खवगाणं जाण तदुगुणं ।। 45 ।।
कितने ही आचार्य उपशमक जीवों का प्रमाण तीन सौ कहते हैं, कितने ही आचार्य तीन सौ चार कहते हैं और कितने ही आचार्य तीन सौ चार में से पाँच कम अर्थात् दो सौ निन्यानवे कहते हैं। इस प्रकार यह उपशमक जीवों का प्रमाण है। क्षपकों का इससे दूना जानो ।। 45।।
चउरुत्तरतिण्णिसयं पमाणमुवसामगाण केई तु । तं चेव यं पंचूणं भणति केई तु परिमाणं । ।46।। कितने ही आचार्य उपशमक जीवों का प्रमाण 304 कहते हैं और कितने ही आचार्य पाँच कम तीन सौ चार अर्थात् 299 कहते हैं।।46।। एक्के गुणट्ठाणे अट्ठसु समएसु संचिदाणं तु । अट्ठसय सत्तणउदी उवसम खवगाण परिमाणं ।।47।। एक-एक गुणस्थान में आठ समय में संचित हुए उपशमक और क्षपक जीवों का परिमाण आठ सौ सत्तानवे है ||47|
सयोगी जीवों का प्रमाण
अट्ठेव सयसहस्सा अट्ठाणउदी तहा सहस्साइं । संखा जोगिजिणाणं पंचसद विउत्तरं जाण ।।48।। सयोगी जीवों की संख्या आठ लाख अट्ठानवे हजार पाँच सौ दो जानो।।48।।