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धवला उद्धरण
कहते हैं, ऐसा जानना चाहिये ।। 2321
जीवसमास के भेद
बादरसुहुमेइंदिय, बितिचउरिंदिय असण्णिसण्णी य पज्जत्तापज्जत्ता, एवं ते चोइसा होंति । । 233 ।।
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बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय ये सातों प्रकार के जीव पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के होते हैं। इसलिये जीवसमास के कुल भेद चौदह बतलाये हैं । 12331
पर्याप्तियों के स्वामी
आहार- सरीरिंदिय-पज्जत्ती आणपाण- भास - मणो । चत्तारि पंच छप्पिय एइंदिय - विगल - सण्णीणं ।। 234 ।। आहार, शरीर, इन्द्रिय, आनापान, भाषा और मन ये छह पर्याप्तियां हैं। उनमें से एकेन्द्रिय जीवों के चार, विकलत्रय और असंज्ञी पंचेन्द्रियों के पाँच और संज्ञी जीवों के छह पर्याप्तियां होती हैं ।। 234 ।।
पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक जीव
जह पुण्णापुण्णा गिह- घड - वत्थाइयाइं दव्वाइं । तह पुण्णापुण्णाओ पज्जत्तियरा मुणेयव्वा ।। 235 ।। जिसप्रकार गृह, घट और वस्त्र आदि द्रव्य पूर्ण और अपूर्ण दोनों प्रकार के होते हैं, उसीप्रकार जीव भी पूर्ण और अपूर्ण दो प्रकार के होते हैं। उनमें से पूर्ण जीव पर्याप्तक और अपूर्ण जीव अपर्याप्तक कहलाते हैं।।235।।