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धवला पुस्तक 1
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युक्त होने की अपेक्षा आठ प्रकार का है। अथवा ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का तथा आठ गुणों का आश्रय होने की अपेक्षा आठ प्रकार का है। जीवादि नौ प्रकार के पदार्थों को विषय करने वाला अथवा जीवादि नौ प्रकार के पदार्थों रूप परिणमन करने वाला होने की अपेक्षा नौ प्रकार का है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति और पंचेन्द्रिय जाति के भेद से दश स्थानगत होने की अपेक्षा दश प्रकार का कहा गया है।।।72-73।।
ग्यारह प्रतिमा
दंसण - वद- सामाइय-पोसह सच्चित्त - राइभत्ते य । बम्हारंभ-परिग्गह-अणुमण - उद्दिट्ठ - देसविरदी य।।74।। देशव्रती श्रावकों की ग्यारह प्रतिमाएं होती हैं, जो ये हैं- दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्त त्याग, रात्रिभुक्ति त्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भ त्याग, , परिग्रह त्याग, अनुमति त्याग और उद्दिष्ट त्याग।
चतुर्विध कथा
आक्षेपणी तत्त्वविधानभूतां विक्षेपणी तत्त्वदिगन्तशुद्धिम् । संवेगिनी धर्मफलप्रपञचां निर्वेदिनी चाह कथा विरागाम् ||7511 तत्त्वों का निरूपण करने वाली आक्षेपणी कथा है। तत्त्व से दिशान्तर को प्राप्त हुई दृष्टियों का शोधन करने वाली अर्थात् परमत की एकान्त दृष्टियों का शोधन करके स्वसमय की स्थापना करने वाली विक्षेपणी कथा है। विस्तार से धर्म के फल का वर्णन करने वाली संवेगिनी कथा है और वैराग्य उत्पन्न करने वाली निर्वेगिनी कथा है।