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चौदह
१५४-१५५ छह संतों का आजीवन साथ रहना । उनका नामोल्लेख । बारहवां सर्ग १-४ नई दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् स्वामीजी का उग्र विहार ।
सत्यक्रान्ति का सर्वत्र स्वागत । ५-२२ आचार्य रघुनाथजी का आक्रोश, लोगों को बहकाना, लोगों
का विभिन्न रूप से विरोध । २३ भिक्षु को रोटी देने का सामाजिक प्रतिबंध ।
२४ मेरी ननद की सामायिक गल जाती है। २५-३४ भिक्षु के प्रति दुर्नीति और विरोध । ३५-३९ रघुनाथजी का मां दीपां से वार्तालाप, दीपां का प्रत्युत्तर ।
४०-४७ भिक्षु द्वारा विरोधों को समभाव से सहना । तेरहवां सर्ग १-५५ आचार्य भिक्षु के सत्य वचनों के प्रति लोगों की अनुरक्ति ।
आचार्य भिक्षु द्वारा अपनी अन्तर्वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति
और अपने दृढ़ निश्चय का प्रगटीकरण । ५६-५८ अपने तथा अपने सहवर्ती संतों के कर्तव्य-पथ का निर्देश । ५९-७२ सभी तीव्र तपोनुष्ठान में संलग्न तथा चर्याविधि । ७३-७९ तपोनुष्ठान से लोगों के मानस में परिवर्तन तथा आचार्य भिक्षु
__ के सान्निध्य से वंचित रहने का अनुताप । ८०-८२ लोगों का यदा-कदा आगमन, तस्वचर्चा तथा आकर्षण । ८३-९५ मुनिद्वय-स्थिरपालजी तथा फतेहचन्दजी का आत्म-निवेदन
तथा आचार्य भिक्षु को जन-प्रतिबोध देने का आग्रहभरा
निवेदन । ९६-१०८ आचार्य भिक्षु द्वारा जन-प्रतिबोध, लोगों का आकर्षण तथा
__ अनुयायियों की वृद्धि। चौदहवां सर्ग १-३ आचार्य भिक्षु का वृद्धिंगत उत्साह से धर्मप्रचार में जुट
जाना। ४-७ ग्रन्थ रचनाओं द्वारा तथा अन्यान्य प्रकार से जन-प्रतिबोध । ८-४९ जन-प्रतिबोध के माध्यम से जैन दर्शन के सही तथ्यों की
सम्यग् अवगति तथा वैराग्य-वर्धक उपदेशों द्वारा जनता में वैराग्य-उत्पादकता।