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ग्यारहवां सर्ग
विषयानुक्रम
१ - ३ पूर्व गुरु आचार्य रघुनाथजी से संबंध-विच्छेद की बात सुनकर राजनगरवासी श्रावकों की प्रसन्नता और अपनी इष्टसिद्धि के प्रति आशान्विति ।
४-६ वर्षा ऋतु का आगमन ।
७- १३ केलवा में 'अंधेरी ओरी' का वर्णन ।
१४ अंधेरी ओरी में चातुर्मास की अवस्थिति ।
१५-४५ सूर्यास्त का वर्णन, चन्द्रमा का उदय, आकाश की आलोकमयता आदि ।
४६-४७ आषाढ़ी पूर्णिमा को चातुर्मासिक प्रतिक्रमण ।
४८-५९ बाल मुनि भारीमाल के सर्प का उपद्रव, आचार्य भिक्षु द्वारा निवारण |
६०-६२ रात्री में यक्ष देव का साक्षात्कार और आचार्य भिक्षु से वार्तालाप |
६३ संतों को जीवित देख लोगों का आश्चर्य ।
६४-६६ मंदिर के मंडप में दो वेदिकाओं की इयत्ता ।
६७-७० स्वामीजी की स्वाध्याय वृत्ति एवं चर्या ।
७१-८६ श्रावक शोभजी के पिता भैरोंजी का स्वामीजी के पास आनाजाना, तात्त्विक विचार-विमर्श तथा प्रतिबुद्ध होकर स्वामीजी की श्रद्धा ग्रहण करना ।
८७-८९ भैरोंजी के साथ सारे पौरवासियों ने भी स्वामीजी को गुरु मान लिया ।
९० - १३९ जोधपुर में बाजार की दूकान में श्रावकों का पौषध करना, सचिव फतेहचन्दजी की जिज्ञासा, श्रावकों का उत्तर ।
१४०-१४९ तेरापंथ का नामकरण तथा आचार्य भिक्षु द्वारा स्वीकरण और उसकी व्याख्या ।
१५० - १५३ प्रथम चातुर्मास संपन्न कर अन्यत्र विहारी संतों का मिलन, विचार-विमर्श, विचारभेद के कारण सात संतों का विलग हो जाना ।