Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(XV)
७५६
(दूसरा गमक : जघन्य और औघिक) ७५४ तिर्यंच-पंचेन्द्रिय में मनुष्यों का उपपात-आदि ७६० (तीसरे से नवें गमक तक)
७५४ इकावनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय में पैंतालीसवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों असंज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ७६० में दूसरी से छट्ठी नरक के नैरयिकों का बावनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय में उपपात-आदि
७५४ संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ७६१ छियालीसवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय- पहला गमक (औधिक और औधिक) ७६१ -जीवों में सातवीं नरक के नैरयिकों का (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) ७६१ उपपात-आदि
७५५
(तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) ७६१ सैंतालीसवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय
(चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक : जघन्य -जीवों में पृथ्वीकायिक-जीवों का उपपात
और औधिक, जघन्य और जघन्य, -आदि
७५६ जघन्य और उत्कृष्ट)
७६२ अड़तालीसवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय
(सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) ७६२ -जीवों में अप्कायिक-जीवों से लेकर
(आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) ७६२ चतुरिन्द्रिय तक जीवों का उपपात-आदि ७५६
(नवां गमकः उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७६२ उनचासवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय
तिरेपनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में -जीवों में असंज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का
भवनपति-देवों का उपपात-आदि ७६२ उपपात-आदि
चौवनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में (पहला गमक)
७५६
व्यन्तर-देवों का उपपात-आदि ७६३ (दूसरा गमक)
७५७
पचपनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में (तीसरा गमक)
७५७
ज्योतिष्क-देवों का उपपात-आदि ७६३ (चौथे से छटे गमक तक)
७५७
छप्पनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में (सातवां गमक)
७५८
वैमानिक-देवों का उपपात आदि ७६३ (आठवां गमक)
७५८
सत्तावनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में (नवां गमक) पचासवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में
सौधर्म-आदि-देवों का उपपात-आदि ७६४ संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय- इक्कीसवां उद्देशक -तिर्यंच-जीवों का उपपात-आदि ७५८
मनुष्य-अधिकार
७६४ (पहला गमक : औधिक और औधिक) ७५९ अट्ठावनवां आलापक : मनुष्यों में प्रथम (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) ७५९ नरक के नैरयिकों का उपपात-आदि ७६४ (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) ७५९ उनसठवां आलापक : मनुष्यों में दूसरी नरक (चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक : जघन्य से छट्ठी नरक के नैयिकों का और औधिक, जघन्य और जघन्य,
उपपात-आदि
७६५ जघन्य और उत्कृष्ट)
७५९ साठवां आलापक : मनुष्यों में तिर्यंच-जीवों का (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) ७६० उपपात-आदि
७६५ (आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) ७६० । इकसठवां आलापक : मनुष्यों में पृथ्वी(नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७६० कायिक-जीवों का उपपात-आदि ७६५
७५८
७६४