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आतंकवाद का मनोविज्ञान -
विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में आज कई प्रश्न आ रहे हैं आखिर आतंकवादी क्या चाहते हैं? बार - बार असफल हो जाने पर भी वह कौन सी ताकत है जो उन्हें फिर से आक्रमण के लिये प्रेरित करती है? इन लोगों में आपस में एकता कैसे बनी रहती हैं? ऐसा कौन सा आवेग या उन्माद हैं जो उनके मनोबल को ऊँचा बनाये रखता हैं? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे तीन प्रमुख तत्व है जो आतंकवाद के लिये नैतिक धरातल तैयार करते हैं। इसी धरातल पर आतंकवाद सक्रिय होकर देश व राष्ट्र को विखंडित करता हैं। यह तीन तत्व हैं धर्म, भाषा और जाति। आतंकवाद को इन्हीं तीन तत्वों से प्राण वायु मिलती है, और उसका अस्तित्व बना रहता हैं। आक्रामकता तथा हिंसा से संबंधित विश्वव्यापी समस्या "आतंकवाद'' के मनोविज्ञान को जानता नितांत आवश्यक हैं। 1. जैवकीय सिद्धांत -
आक्रामकता व हिंसा का आतंकवाद से अट्ट संबंध हैं। हिंसा और आतंकवाद आज मानव समाज के लिये अभिशाप बने हुए हैं। आतंकवाद हिंसा के पेड़ पर लगा फल हैं व उसकी जड़े क्रोध, आक्रामकता, कामवासना, घृणा, द्वेष और आपसी दुश्मनी में हैं। इस दिशा में हुए अध्ययनों से यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है कि आक्रामकता व हिंसा का संबंध मस्तिष्क से हैं। ब्रेडी व नाटा (1953) के अनुसार लिम्बिक प्रणाली का आक्रामक व्यवहार से संबंध होता हैं।'
हेस व एकर्ट (1955) के अनुसार हायपोथैलेमस का आक्रामकता से संबंध हैं। मस्तिष्क के एमिगडाला का संबंध आक्रामकता और आत्म विध्वंसकारी व्यवहारों से हैं।
मेक्कावी व जेकलिन (1980) के अनुसार आक्रामकता का संबंध हार्मोन से होता हैं। पुरूषों में पाया जाने वाला सेक्स हार्मोन एन्ड्रोजन (टेस्टोस्टीरान) ही आक्रामक व्यवहार के लिये उत्तरदायी हैं।
जैवकीय सिद्धांत के अनुसार आतंकवादियो द्वारा आक्रामक व हिंसक व्यवहार प्रदर्शित करने का कारण मस्तिष्क के विशेष भाग का उद्दीप्त होना या पुरूष सेक्स हार्मोन का अधिक स्त्राव हैं। 2. मूल प्रवृत्ति सिद्धांत -
शरीर शास्त्री इस बात को स्वीकार करते हैं कि हर इंसान के अंदर एक शैतान और हर नायक के अंदर एक खलनायक छुपा होता हैं, जो अगर हावी हो जाये तो नतीजा अक्सर संहार में निकलता हैं। आतंकवादियों द्वारा प्रदर्शित आक्रामक व हिंसक व्यवहार जन्मजात होता हैं। फ्रायड (1957) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में दो तरह की मूल प्रवृत्ति पाई जाती हैं - जीवन मूल प्रवृत्ति (इरॉस) तथा मृत्यु मूल प्रवृत्ति (थैनेटॉस)। जीवन मूल प्रवृत्ति से व्यक्ति को रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा मिलती हैं जबकि मृत्यु मूल प्रवृत्ति से विध्वंसात्मक तथा आक्रामक कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती हैं। मृत्यु मूल प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति की दिशा अंतर्मुखी या बहिर्मुखी हो सकती हैं। यदि दिशा अंतर्मुखी होगी तो व्यक्ति आत्महत्या कर सकता हैं तथा यदि दिशा बहिर्मुखी होगी तो व्यक्ति दूसरों के प्रति आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित कर सकता हैं।'
अपनी जान की परवाह किये बगैर दूसरों को तबाह करने वाले आतंकवादियों में (आत्माघाती / मानवबम) मृत्यु मूल प्रवृत्ति की ही प्रधानता होती हैं। इन्हें तो जान की परवाह
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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