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लेखकों हेतु संदेश 1. अर्हत् वचन में जैन धर्म / दर्शन के वैज्ञानिक पक्ष तथा जैन इतिहास
एवं पुरातत्त्व से संबंधित मौलिक, शोधपूर्ण एवं सर्वेक्षणात्मक आलेखों
को प्रकाशित किया जाता है। 2. शोध की गुणात्मकता एवं मौलिकता के संरक्षण हेतु दो प्राध्यापकों अथवा
पारम्परिक विषय विशेषज्ञों से परीक्षित करा लेने के उपरान्त ही आलेख
अर्हत् वचन में प्रकाशित किये जाते हैं। 3. शोध आलेखों के अतिरिक्त संक्षिप्त टिप्पणियां, अकादमिक संगोष्ठी / सम्मेलनों
की सूचनाएँ / आख्याएँ, आलेख एवं पुस्तक समीक्षाएँ, विशिष्ट गतिविधियां, विशिष्ट अकादमिक पुरस्कारों एवं प्रकाशनों की सूचनाओं को भी प्रकाशित
किया जाता है। 4. अर्हत् वचन में प्रकाशित किये जाने वाले समस्त लेख इस अपेक्षा
से प्रकाशित किये जाते हैं कि वे न तो पूर्व प्रकाशित हैं एवं न अन्यत्र प्रकाशनार्थ प्रेषित हैं। यदि पूर्व प्रेषित कोई लेख अन्यत्र प्रकाशित हो चुका है तो माननीय लेखकों को इसकी सूचना हमें तत्काल अवश्य
भेजनी चाहिये। 5. लेखकगण यदि किसी पुस्तक या लेख से सन्दर्भ ग्रहण करते हैं तो
उन्हें सम्बद्ध लेख/पस्तक का पूर्ण सन्दर्भ देना चाहिये। विस्तत अनदेश इसी अंक में पृ. 116 पर प्रकाशित हैं। कृपया अनुदेशों के अनुरूप
ही सन्दर्भ देने का कष्ट करें। 6. लेखकगण अपने आलेख की दो प्रतियाँ टंकित या सुवाच्य हस्तलिपि
में एक पृष्ठीय सारांश सहित भेजने का कष्ट करें। प्रथम पृष्ठ पर लेख का शीर्षक, लेखक/लेखकों के नाम एवं पत्राचार के पूर्ण पते होने चाहिये। अन्दर के पृष्ठों पर लेखक/लेखकों के नाम न दें। 7. लेख के साथ लेख के मौलिक एवं अप्रकाशित होने का प्रमाण पत्र
अवश्य संलग्न करें एवं अर्हत् वचन में प्रकाशन के निर्णय होने तक अन्यत्र प्रकाशनार्थ न भेजें।
- डॉ. अनुपम जैन
सम्पादक - अर्हत् वचन
मानद् सचिव - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ 584, म. गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर - 452001
फोन : 0731-2545421, 2787790
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अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International
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