Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 117
________________ मत- अभिमत अर्हत् वचन का वर्ष 14, अंक 2-3 (संयुक्तांक) प्राप्त हुआ। इस अंक को पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसमें आपने बहुत महत्वपूर्ण सामग्री संकलित की है, विशेष रूप से जैन गणित के सम्बन्ध में। जैन गणित पर जिस किसी को कार्य करना हो, उसके लिय; आप तो मार्गदर्शक होंगे ही, इस अंक में जिन लेखों/लेखकों की सूची आपने प्रकाशित की है (हिन्दी, अंग्रेजी दोनों में) तथा जो अन्य शोधपरक लेख प्रकाशित किये हैं, वे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। मैं आपको इस अंक के प्रकाशन के लिये हार्दिक बधाई देता हूँ। आप वास्तव में जैन विज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से एक मार्गदर्शक स्तंभ के रूप में स्थापित हो गये हैं। मैं कामना करता हूँ कि आप इसी प्रकार प्रगति पथ पर बढ़ते रहें और गणित एवं अन्य तकनीकी/वैज्ञानिक विषयों में जैनाचार्यों के योगदान को जैन और सम्पूर्ण विश्व समाज के सम्मुख रख सकें। 15.11.02 - डॉ. विमल प्रकाश जैन निदेशक - भोगीलाल लहेरचन्द प्राच्य विद्या संस्थान, दिल्ली- 110036 आपके द्वारा प्रेषित अर्हत् वचन वर्ष 14, अंक (2-3) प्राप्त हुआ। भविष्य में भी इससे लाभान्वित करते रहेंगे, ऐसी आशा है। गणित विषय के लेख समादरणीय एवं ज्ञावर्द्धक है। काल विषयक महत्वपूर्ण लेख भी पठनीय है। डॉ. स्नेहरानी जैन ने वैज्ञानिक काल का संग्रह कर पाठकों का उपकार किया है। लेकिन पता नहीं किसी दृष्टिकोण से उन्होंने काल को बहुप्रदेशी कहा? यदि काल बहादेशी होता तो पाँच अस्तिकाय की अवधारणा जैन दर्शन में नहीं होती। जैन दर्शन काल को अस्तिकाय नहीं मानता है क्योंकि वह बहप्रदेशी नहीं है। काल को प्रदेश मात्र माना गया है। अर्हत वचन पठनीय एवं संग्रहणीय है। 18.11.02 . डॉ. लालचन्द जैन द्वारा - डॉ. जैनमतीजी जैन. श्री जैन बाला विश्राम, घरहरा, आरा (बिहार) अर्हत् वचन का नया अंक 14(2 - 3) बहुत प्रभावी है। सामग्री की प्रचुर समृद्धि स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती है। बधाई स्वीकार करें। 'आगम का प्रकाश - जीवन का विकास' स्तम्भ में लेखकों की रचनाओं का आमंत्रण उपयोगी सिद्ध होगा। 12.12.02 - प्रो. पारसमल अग्रवाल ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी, ओक्लाहोमा (अमेरिका) अर्हत् वचन की प्रतिष्टा तकनीकी दृष्टि से सम्पुष्ट प्राकृत एवं जैन विद्या के प्रसंगों को रेखांकित करने के कारण बढी है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की शोध पत्रिका अर्हत् वचन में ऐसे अनेक लेख विगत दो वर्षों में छपे हैं जो जैन गणित और विभिन्न आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं के साथ समीकृत किये जा सकते हैं। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के सारे सिद्धान्त कर्मवाद और सृष्टि संरचना के प्रसंगों में दिखाई पड़ते हैं। जैनियों ने अपने गणितीय आधार के लिये स्वयं की तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया है, जिसे अन्यत्र नहीं ढूंढा जा सकता है। इस प्रकार जैन गणित की उपलब्धियों से विश्व को परिचित कराना आधुनिक लेखकों का दायित्व है। प्रो. एल. सी. जैन, डॉ. आर. सी. गुप्ता, डॉ. अनुपम जैन, डॉ. परमेश्वर झा सदृश अनेक विद्वान इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। - डॉ. राजेन्द्र त्रिवेदी रीडर - संस्कृत विभाग, रानी दुर्गावती वि.वि., जबलपुर (म.प्र.) (व्याख्यान का अंश) अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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