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से अधिक करीब रखा तथा जनमानस को उसी के अनुरूप जीवन जीने की ऐसी पद्धति बतलाई, जिसमें व्यक्ति स्वस्थ व प्रसन्न रह सके। तीर्थंकरों के जन्म के पूर्व उनकी माताओं द्वारा देखे गये स्वप्नों में प्राकृतिक वस्तुओं या घटनाओं का होना प्राकृतिक जगत से सम्बद्ध मंगल या क्षेम के प्रतीक हैं। वनस्पति जगत को कल्पवृक्ष कहकर प्रकृति का सम्मान किया जाता रहा है। महावीर तथा अन्य तीर्थंकरों ने किसी न किसी वृक्ष के नीचे रहकर ही ज्ञान की प्राप्ति की है। पीपल, वट तथा अशोक के वृक्ष हमारे धार्मिक जीवन से लगातार जुड़े हैं। प्राचीन काल में ऋषि - मुनि स्वयं जंगलों में रहकर प्रकृति की सुरक्षा करते थे। जैन विचारकों ने स्वयं सदैव जीव जन्तु तथा वनस्पति के प्रति संवेदना का भाव रखने का संदेश दिया।
आज संपूर्ण विश्व में प्रकृति के असंतुलन का संकट पैदा हो गया है। लोगों ने भौतिकवाद और उपभोक्ता संस्कृति की चकाचौंध में प्रकृति के महत्व को भुला दिया है। अब तो विश्व के वैज्ञानिक यहां तक आशंका प्रगट कर रहे हैं कि आने वाले कुछ दशाब्दियों में पृथ्वी का एक बहुत बड़ा हरा-भरा भाग रेगिस्तान में परिवर्तित हो जायेगा तथा कई क्षेत्रों में इतनी तेज गरमी पड़ने लगेगी कि संभवत: वहां जीवन समाप्त होने का खतरा पैदा हो जाये। इस गंभीर संकट से त्राण पाने के लिए हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं धर्म में प्रयुक्त उन संदेशों का प्रचार - प्रसार करना पड़ेगा, जिससे लोग प्रकृति के महत्व को अच्छी तरह समझें तथा उनके प्रति अपनी निष्ठर भावना का परित्याग कर सकें। संपूर्ण जैन धार्मिक साहित्य में अहिंसा पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है और इसके सूक्ष्मतम स्वरूप की विशद् व्याख्या की गई है, ताकि लोग सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राकृतिक जीवों के प्रति भी अहिंसक बन सकें। यदि हम विश्व में बढ़ रहे प्रदूषण, अपराध, हिंसा एवं प्राणघातक रोगों पर नियंत्रण करना चाहते हैं, तो हमें स्वयं को प्रकृति के अधिक से अधिक करीब ले जाना पड़ेगा। आज प्रकृति संरक्षण सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है, जिसमें हर स्तर पर हर व्यक्ति को सहभागी होना पड़ेगा। इस तेजी से बढ़ते वैज्ञानिक युग में आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने अतीत से प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने के उपायों को खोजें तथा उनके महत्व को समझें, ताकि मानवता पर आये प्राकृतिक असंतुलन के गहरे खतरे को टाला जा सके।
प्राप्त - 14.2.2002
अखिल भारतवर्षीय जैन पत्रकार सम्केलन परमपूज्य उपाध्यायरत्न 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ एवं प्राच्य श्रमण भारती, मुज्जफ्फरनगर के संयुक्त तत्वावधान में मार्च - अप्रैल 2003 में एक अखिल भारतीय पत्रकार सम्मेलन प्रस्तावित है। इस सम्मेलन में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार - विमर्श हेतु पत्रकारों से सुझाव आमंत्रित हैं। कुछ विचारणीय बिन्दु निम्नवत् हैं - 1. जैन पत्रकारिता का स्वरूप एवं उद्देश्य 2. जैन पत्र - पत्रिकाओं की समाजोत्थान में भूमिका 3. जैन पत्र-पत्रिकाओं को वाछित समाज का सहयोग 4. जैन पत्र - पत्रिकाओं की समस्याएँ और उनका समाधान सम्मेलन स्थल एवं तिथियों की घोषणा बाद में की जायेगी।
. कुलभूषण जैन, संयोजक
सम्पादक - जैन प्रदीप, देवबन्द (सहारनपुर) अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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