Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 90
________________ क्या क्या हानिकारक तत्व है ? इत्यादि बातों का स्वस्थ स्वास्थ्य के लिये चिंतन परिपालन आवश्यक है। जिस प्रकार विष की एक बूँद मन भर दूध को विषाक्त, अपेय बना देती है, एक चिनगारी लाखों टन घास को जला देती है, ठीक उसी प्रकार भोजन में उपर्युक्त तथ्यों का जितना ज्यादा विवेक, चिंतन, परिपालना होगी, भोजन उतना ही अच्छा, स्वास्थ्यवर्द्धक एवं निर्दोष होगा इसके विपरीत उपर्युक्त बातों की जितनी उपेक्षा, लापरवाही होगी, उतना ही भोजन हानिकारक एवं दोषपूर्ण होगा। आज बहुत ही दुर्भाग्य, खेद का का विषय है कि टी.वी. और अन्य संचार माध्यमों के द्वारा उपभोक्ताओं को आकर्षित करने वाले मायावी भ्रामक हानिकारक पदार्थों का खुले आम प्रचार प्रसार हो रहा है। कृषि मंत्रालय मांसाहार को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न सुविधायें उपलब्ध कराता रहा है। शिक्षा मंत्रालय मांसाहार के दुष्प्रभावों से विद्यार्थियों को अवगत कराने की जिम्मेदारी से दूर भाग रहा है। अमेरिका आदि देशों में मांस, बीडी, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, शराब आदि के विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध है लेकिन हमारा संचार मंत्रालय इन सबका प्रचार प्रसार विज्ञापन कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप भारत में रोग एवं रोगियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। मांसाहार, तामसिक आहार स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक, आर्थिक दृष्टि से महंगा आध्यात्मिक दृष्टि से नीच गति में ले जाने वाला मानवीय गुणों का नाश करने वाला, पर्यावरण की दृष्टि से अन्याय का पोषण करने वाला है। अतः जो मांसाहार, तामसिक आहार करते हैं करवाते हैं, अथवा करने वालों को अच्छा समझते हैं वे सभी असंस्कारित अमानवीय, रसना इन्द्रिय के गुलाम, स्वादलोलुप, पराधीन, परावलम्बी, भक्ति, असंयमी, निकृष्ट र है। इस छोटी सी टिप्पणी के माध्यम से आज की भोगवादी, मायावी भ्रमित पीढ़ी को यह बताना चाहती हूँ कि मानव जीवन के प्रत्येक कदम के साथ शाकाहार होना चाहिये। यहाँ शाकाहार से मेरा तात्पर्य सिर्फ गॉस के त्याग से ही नहीं है बल्कि अपने शौकों, मनोरंजनों को पूर्ण करने हेतु हिंसा न करना भी शाकाहार है। शाकाहार को स्पष्ट करने हेतु मेरी निम्न स्वरचित परिभाषा दृष्टव्य है मनुष्य जन्म से शाकाहारी माँस उसे अनुकूल नहीं । 1 पशु भी मानव जैसे प्राणी, वे मेवा फल फूल नहीं ॥ शाकाहार मात्र शाक आहार नहीं शाकाहार एक संस्कृति या सभ्यता मात्र नहीं, शाकाहार केवल प्रकृति का एक वरदान नहीं शाकाहार सिर्फ एक लेख या कविता नहीं, शाकाहार हे जीओ और जीने दो की विचारधारा, शाकाहार है करुणा, दया, स्नेह, अहिंसा, सत्य का संगम, शाकाहार है पुष्प के मध्य सुरभि, शाकाहार है एक आत्मीयता, नैतिकता, संवेदनशीलता, सहिष्णुता, शाकाहार है एक सरल, शुद्ध, पवित्र संपूर्ण जीवनशैली' शाकाहार जिनेन्द्र देव की असीम अनुकम्पा का परिणाम है जो सभी प्राणियों के लिये अमूल्य रत्न के समान है। अतः शाकाहार की उपयोगिता स्वीकारते हुए स्वयं शाकाहारी बनें, दूसरों को बनायें। यदि हम ऐसा करने में सफलता प्राप्त करते हैं तो निश्चित ही महावीर की जनकल्याणी अमृतवाणी के प्रति हमारी सच्ची विनयांजलि होगी। 86 Jain Education International · संघस्थ वैज्ञानिक आचार्य कनकनंदीजी महाराज सम्पर्क डॉ. नारायणलाल कच्छारा, सूत्र 55 रवीन्द्र नगर, उदयपुर - 313003 (राज.) For Private & Personal Use Only - अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 www.jainelibrary.org

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