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है। ऊर्जा न तो निर्मित की जा सकती है, न ही नष्ट केवल विविध स्तरों पर उसके स्वरूप और स्थिति में परिवर्तन किया जा सकता है। उसे आकार, गति एवं दिशा दी जा सकती है।
विभिन्न ऊर्जाओं के सन्तुलीकरण, संगतिकरण एवं केन्द्रीकरण के द्वारा जीव सृष्टि में नव चेतना प्रदान करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया को यज्ञ शास्त्र कहा जाता है। भिन्न भिन्न परिणामों को प्राप्त करने हेतु भिन्न भिन्न यज्ञों की योजना की जा सकती है। यह प्राण शक्ति को प्रभावित कर अति सूक्ष्म स्तर पर अणुओं की अन्तः रचनाओं पर सुप्रभाव डालने वाला शास्त्र है।
प्रदूषण एक संकट अज्ञानवश मनुष्य प्रकृति के ऊर्जाक्षेित्र में हस्तक्षेप एवं उथल-पुथल करता है, जिसके फलस्वरूप प्रकृतिचक्र अस्त व्यस्त हो जाता है। इसी कारण जीव सृष्टि का विनाश होता है। प्रदूषण ऐसी ही एक मानवनिर्मित समस्या है प्रदूषण के कारण जीव सृष्टि की आधारभूत चैतन्यदायी प्राणमयी ऊर्जा क्षीण होने लगी है, फलस्वरूप जीव सृष्टि में दुर्बलता आने लगी है।
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पदार्थों के अणुओं की अन्तः रचना स्थित शक्ति क्षेत्र दुर्बल होने के कारण अणु में स्थित गतिमान इलेक्ट्रॉन अणु गर्भ की कक्षा के शक्ति क्षेत्र से बाहर निकलकर अन्य अणुओं की व्यवस्था में तत्काल प्रवेश करते हैं फलस्वरूप इन अणुओं का मूल स्वरूप बिलकुल बदल जाता है इस प्रक्रिया में एक बहुत बड़ी विध्वंसक ऊर्जा उत्सर्जित होती है तथा इधर उधर प्रक्षेपित होती है जिसका विपरीत परिणाम जीव सृष्टि के विनाश का कारण बन जाता है।
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प्रदूषण के कारण मनुष्य का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ खराब होता है, वनस्पति, सूक्ष्मजीव एवं प्राणी व पक्षियों का जीवन संकट में आ जाता है भूकंप, ज्वालामुखी प्रस्फुटित होना, अतिवृष्टि, अकाल, बाढ़, संसर्गजन्य रोग या नई नई प्राणघातक बीमारियों का तेजी से फैलना, मनोविकारों की प्रबलता बढ़ने से अपराधी मनोवृत्ति को बढ़ावा मिलना, मद्य एवं मादक पदार्थों के प्रति आकर्षण होना, अशान्ति तथा कलह का बढ़ना आदि दुष्परिणाम प्रदूषण के कारण ही चारों ओर दिखाई दे रहे हैं पृथ्वी लोक पर मानव आज संकट काल से गुजर रहा है मानव वंश समूल नष्ट होने जैसी स्थिति निर्मित हो रही है।
अग्निहोत्र का प्रयोग कैसे करें ? पिरामिड के आकार के ताम्र पात्र में गाय-बैल (गोवंश) के गोबर के बने कण्डों में अग्नि प्रज्जवलित कर सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय चुटकीभर अखंडित चावल को थोडा सा गाय के दूध से बना शुद्ध घी लगाकर उस मिश्रण को दाहिने हाथ का अगूंठा, बीच वाली अंगुली (मध्यमा) एवं अनामिका से पकडकर (मृगमुद्रा ) हृदय के पास स्थित अनाहत चक्र के निकट ले जाकर विशिष्ट मंत्रोच्चार के साथ धुँआ रहित प्रज्जवलित अग्नि में मंत्र के 'स्वाहा' शब्द के उच्चार के साथ सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय समर्पित करें। मंत्रों के बारे में लेखक से सम्पर्क कर सकते हैं।
सम्पूर्ण वर्ष का सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय गाँव के अक्षांश रेखांश के आधार पर ज्ञात किया जा सकता है।
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अग्निहोत्र का परिणाम प्रज्जवलित अग्नि में चॉवल, घी तथा मंत्र का मिश्रण तत्काल अतिसूक्ष्म ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है परिणाम स्वरूप ताम्रपात्र के आसपास विद्युत चुम्बक के समान आकर्षण क्षेत्र का निर्माण हो जाता है जिसके फलस्वरूप प्राणमय शक्ति गतिशील होकर 18 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित सौर मण्डल की ओर बढ़ने लगती है। ऊर्जा के इस प्रचण्ड तूफान का शोर इतना प्रबल होता है कि इसका मनुष्य के मन
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अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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