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है कि हम शाकाहार को बुद्धिपूर्वक बिना किसी कुतर्क के अपनाऐं, स्वीकारें एवं अधिक से अधिक मांसाहारियों को नैतिक, मानवोचित, जीवदया पूर्ण एवं निर्दोष आहार - 'शाकाहार' अपनाने के लिए प्रेरित करें - करावे, यही अभीष्ट है।
किन्तु अभी सर्वत्र शाकाहार संभावनादि के सम्बन्ध में, एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण और अनिवार्य है। प्रश्न - "टंडे देशो में शाकाहार कैसे संभव?" के समाधानार्थ एक प्रतिप्रश्न करना सर्वथा .. उपयुक्त रहेगा - "ध्रव क्षेत्रों के या विकट ठंडे देशों के लोग जिन पशुओं का मांस खाते हैं, क्या वे पशु मांसाहारी होते हैं?'' उत्तर होगा - 'नहीं।' पुन: प्रश्न उठना अवश्यंभावी है - "फिर दे पशु क्या खाते हैं, एवं क्या खाकर जीवित रहते है?" उत्तर होगा - "मांस' या 'काई' सदृश एक वनस्पति।" ऐसा समाधान जान लेने के पश्चात् कहने की आवश्यकता नहीं कि उन विकट ठंडे देशों/ क्षेत्रों के मानव भी उसी काई आदि को मनुष्य के खाने योग्य अवश्य ही बना सकते हैं और फिर आज के विविध क्षेत्रीय शोधरत वैज्ञानिकों का ध्यान भी दक्षिणी ध्रव - क्षेत्र 'मैत्री' में उगाई गई सब्जियों, फलों ही की भांति, अत्यन्त ही तेजी से, समग मानव - जाति के लिए, शाकाहार उपलब्ध कराए जाने की दिशा में, अन्य बर्फ जमे क्षेत्र-वासियों के प्रति भी केन्द्रित हो, यही आज की जन कल्याणप्रद आवश्यकता है।
* पी.डब्ल्यू.डी. क्वार्टर नं.52, समद रोड़, अलीगढ-202001 (उ.प्र.)
प्राप्त - 9.8.2002
कंपिल्य सिद्धक्षेत्र पर शास्त्रि परिषद एवं विद्वत् महासंघ का संयुक्त अधिवेशन
भगवान विमलनाथ के चार कल्याणकों की पुण्य भूमि पर पूज्य मुनि श्री समतासागरजी, मुनि श्री प्रमाणसागरजी, ऐलक श्री निश्चयसागरजी के सान्निध्य में युवा प्रतिष्ठाचार्य श्री सनतकुमार विनोदकुमारजी रजवाँस वालों के आचार्यत्व में विविध धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इन्दौर की पंचकल्याणक नृत्यनाटिका की सभी ने बहुत सराहना की। इस अवसर पर प्रा. नरेन्द्रप्रकाशजी जैन की अध्यक्षता में शास्त्रि परिषद एवं डॉ. शेखरचन्द जैन की अध्यक्षता में भगवान ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की कार्यकारिणी की बैठकें सम्पन्न हुई। दोपहर में डॉ. शेखरचन्द जैन की अध्यक्षता में दोनों संस्थाओं का खुला अधिवेशन सम्पन्न हुआ, जिसमें महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुए। जिनके भाव निम्नलिखित हैं1. हमारे पुज्य मुनिवर, श्रद्धेय पंडित वर्ग व संधी श्रावकगण पूरे देश में जहाँ जिस प्रकार की
पूजा पद्धति का चलन हो, श्रावक समाज की जिस प्रकार की श्रद्धा हो. उसे बदलने का
उपाय या हस्तक्षेप कर समाज में वैमनस्यता न बढ़ाये। 2. हमारे पूज्य साधु भगवंत किसी एक आचार्य द्वारा स्थापित किसी भी मूर्ति या अन्य स्थायी
महत्वपूर्ण कार्यों की टीका टिप्पणी करके उन्हें दूर कराने का प्रयत्न कर समाज में भेदभाव
उत्पन्न न करें। 3. दोनों संस्थाएँ भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालन्दा) ही मानती है। ऐसा स्पष्ट प्रस्ताव सर्वानमति से कार्यकारिणी एवं सामान्य सभा में पारित किया गया।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा को सुन्दर रूप से सम्पन्न कराने में पं. शिवचरनलाल जैन मैनपुरी, डॉ. श्री सुशीलकुमार मैनपुरी का विशेष सहयोग रहा। कपिल्यजी में एक भी जैन का घर न होने के बावजूद इतना सुन्दर कार्य हो सका यह भी एक अतिशय है।
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अर्हत् वचन, 14(4), 2002
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