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रेत, पत्थर की बजरी, सादी जमीन और कभी-कभी बर्फ के ऊपर भी प्रेस किये हए मिलते हैं। ये छोटे से लेकर बड़े आकार में और बहुत बड़े आकार से छह इंच व्यास तक भी मिले हैं। अभी तक प्राप्त सबसे बड़ा फार्मेशन एक मील लम्बा, कई आकार के चक्रों के साथ, 409 चक्रों वाला, 787 फीट व्यास के साथ सन् 2000 में विल्ट सायर के मिल्क हिल्स में पाया गया था। ये औसतन एक फुटबाल मैच के मैदान के बराबर होते हैं। ऐसा लगता है जैसे बहुत धीरे से पौधों को किसी ने दबाकर कई सुन्दर
और सूक्ष्म एवं अर्थपूर्ण आकृतियाँ जमीन पर बनाई हैं। खास बात यह है कि पौधे नष्ट नहीं होते हैं, समय के साथ बढ़ते हैं और फसल पकती भी है।
क्राप सर्कल सिर्फ साधारण निशान ही नहीं हैं, रेखागणित की बहुत बारीकी से बनाई गई आकृतियाँ, गणित की उच्चस्तरीय पहेली का चित्र या पुरानी चीजों से मिलती-जुलती निशानों से बनी हुई या कभी तीनों से मिलती-जुलती आकृतियाँ हैं।
कई रिपोर्टस् बताती हैं कि क्राप सर्कल्स पूरी शताब्दी से हमारे साथ हैं। परन्तु पिछले बीस वर्षों से लगातार हमारे खेतों में एक फार्मेशन से दूसरे फार्मेशन पर हर बार अधिक अर्थपूर्ण आकृतियों के साथ, कठिनतम गणितीय आकृतियों के साथ प्रस्तुत हुए हैं। ये सांकेतिक तो हैं ही, क्योंकि यह एक अंतरंग अर्थ रखते हैं और पुराने संकेतों की तरह कई तरह से, कई बहुरूपता के साथ, बहुत अर्थपूर्ण तो होते हैं, कई स्तर पर, कई तरह से, कई तरह के लोगों ने इस अर्थपूर्ण भाषा को समझने की कोशिश की है। .
क्राप सर्कल का कई वर्षों से, कई उदाहरणों के साथ अंतहीन सिलसिला जारी है और उसका अंत भी नहीं दिखता है। विस्मयकारी गहनता और गहन होती जा रही है। ब्रह्माण्ड अपने आश्चर्य दिन-प्रतिदिन दिखाते जा रहा है और हम बौने साबित हो रहे हैं।
इन रहस्यों के समाधान में यह तथ्य दृष्टि
में रखना उपयोगी होगा कि 22.7.2000 को विल्टसायर (इंग्लैंड) में बने क्राप सर्कल का दृश्य
जैनागमानुसार वर्तमान ज्ञात
पृथ्वी जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र के एक भाग आर्यखंड में समाहित है एवं न केवल इस जम्बूद्वीप अपितु घातकीखंड द्वीप में भी अनेक उत्कृष्ट सभ्यताओं, जीव राशियों की विद्यमानता है। विदेह क्षेत्र आदि भी इन्हीं द्वीपों में समाहित हैं। क्या यह उन सभ्यताओं के विशिष्टजनों की वैज्ञानिक गतिविधियों का परिणाम तो नहीं? यह विचारणीय है।
* वाइस प्रेसिडेन्ट - प्रेस्टीज ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज 'मनकमल', 104, नेमीनगर, इन्दौर - 452 009
प्राप्त - 25.09.2002
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अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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