________________
चयापचय, पुनुत्पादन आदि क्रियाओं को देखा जा सकता है। जिसमें जीव के लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे हों उसे अजीव मान लेना उचित नहीं है। कोशिका को अजीव मानने का अर्थ होगा कि विज्ञान की मान्यता के बिल्कुल विपरीत हो जाना। यह सही
है कि कोशिकाएँ औदारिक शरीर का हिस्सा हैं। 5. शंका - वायरस अजीव हैं, उनमें जीव के लक्षण दिखाई नहीं देते।
समाधान - वायरस एक बौर्डर - लाइन केस है। जब यह कोशिका में प्रवेश करता है तो वहाँ पुनुत्पादन प्रारम्भ कर देता है और वह भी बहुत तेजी से। अत: जिस समय यह पुनुत्पादन करता है उस समय तो निश्चित रूप से जीव ही होता है। उसके पश्चात् यह निष्क्रिय सा हो जाता है।
वायरस को गेहूँ के बीज की तरह योनिभूत स्थान माना जा सकता है। जिस प्रकार गेहूँ का बीज जमीन में गिरता है तो वह अंकुरित हो जाता है और सजीव हो उठता है। इसी से बाद में उसमें गेहूँ पुन: उत्पन्न होता है। इसी प्रकार वायरस को भी एक योनिभूत स्थान माना जा सकता है। जब यह कोशिका में प्रवेश करता है तो अपने जैसे ही दूसरे वायरस पैदा करता है। गेहूँ के दाने पुन: पैदा होने में कुछ समय लगता है जबकि वायरस पुनः पैदा होने में बहुत ही कम समय लगता है। अत: हम मान सकते हैं कि वायरस की आयु बहुत ही अल्प होती है। अत: वायरस उस समय तो निश्चित रूप से अल्प आयु वाला एक जीव ही है जब यह
कोशिका में प्रवेश करता है तथा पुनुत्पादन करता है। 6. शंका - क्या दही को बिना बैक्टेरिया के बनाया जा सकता है? क्या इसे या फिर
इससे बनी छाछ को पूर्ण रूप से बैक्टेरिया रहित अचित्त कहा जा सकता है? समाधान - बिना बैक्टेरिया के दही बनना संभव नहीं है चाहे किसी भी तरीके से क्यों न बनाया हो। दही को बिलोकर छाछ बनाने पर भी उससे बैक्टेरिया को अलग नहीं करा जा सकता है और न ही वह नष्ट करा जा सकता है। हाँ इतना अवश्य है कि दही बिलोने पर तथा उसमें मसाले आदि मिला देने से बैक्टेरिया की वृद्धि अवश्य रूक जाती है तथा बैक्टरिया की कालोनी पुन: नहीं बन पाती है। हम कह सकते हैं कि बिलाने पर तथा मसाला आदि मिलाने पर हम उसके योनिस्थान को अस्तव्यस्त (disturb) कर देते हैं तथा उनका पुनुत्पादन रूक जाता है। संभवत: दही के सम्बन्ध में इसे अचित्त करने का मतलब यही है कि इसके योनिस्थान को छिन्न-भिन्न कर दिया जाये। और इसके पश्चात् जो बैक्टेरिया रह जाते हैं वे अपनी आयु पूर्ण करके समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण दही के बजाय दही की छाछ ग्रहण करने का प्रावधान है। लेकिन जिस छाछ को ग्रहण करा जाता है वह पूर्ण रूप से बैक्टेरिया रहित हो जाती है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। ऐसी छाछ का माइक्रोस्कोप द्वारा परीक्षण
करा जा सकता है और संतुष्ट हुआ जा सकता है। सन्दर्भ - 1. जीवन क्या है ? (What is Life?), डॉ. अनिलकुमार जैन - अहमदाबाद, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ - इन्दौर एवं तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ, 2002
* बी - 26, सूर्यनारायण सोसायटी, साबरमती,
अहमदाबाद -5 102
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org