Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 110
________________ परमेश्वर के 'वागर्थ संग्रह पुराण' को ही आधारभूत माना हो पर आजकल वह रचना अप्राप्य है। इसलिये रामकथा की इस द्वितीय धारा के उपोद्घाटक के रूप में सर्वप्रथम गुणभद्र का ही नाम आता है। दोनों रामकथाओं में अनेक मतों का अन्तर है। पहली धारा तो फिर भी अच्छी लगती है परन्तु दूसरी धारा कुछ अटपटी सी लगती है। श्वेताम्बर परम्परा में तीर्थकर आदि शलाका पुरुषों के जीवन सम्बन्धी कुछ तथ्यांश स्थानांग सूत्र में मिलते हैं जिसे आधार मानकर आचार्य हेमचन्द्र आदि ने त्रिषष्ठि महापुराण आदि की रचनाएँ की हैं। हेमचन्द्राचार्य कृत जैन रामायण, जो त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित का एक अंश है, इसी धारा के अनुरूप विकसित है। जिनदास कृत रामपुराण, पद्मदेव विजयगणि कृत रामचरित तथा कथाकोषों में आगत रामकथाएँ इन्हीं धारा में प्रवाहित हुई हैं। प्रस्तुत कृति के प्रथम अध्याय में प्रस्तावना के रूप में राम के स्वरूप का उद्भव एवं विकास तथा पुराण साहित्य प्रबन्ध काव्य, नाट्य साहित्य हिन्दी साहित्य में अलग अलग राम के स्वरूप का वर्णन प्रस्तुत किया है। पुराण साहित्य में हमने बाल्मीकि कृत रामायण, प्रबन्ध काव्य में गुप्त कृत साकेत, नाट्य साहित्य में प्रसिद्ध नाटककार भवभूति द्वारा रचित उत्तररामचरित तथा हिन्दी साहित्य में नरेन्द्र कोहली के उपन्यास अभ्युदय में हमने राम के स्वरूप का विस्तारपूर्वक वर्णन प्रस्तुत किया है। द्वितीय अध्याय में जैन रामायणों की उत्पत्ति तथा जैन रामायणों की सूची प्रस्तुत की है। इसमें हमने संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश के आचार्य रविषेण विमलसूरि एवं स्वयंभू की कृति क्रमशः पद्मचरित पउमचरियं एवं पउमचरिउ का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया है तथा तृतीय अध्याय में इन्हीं जैन रामायणों में राम के व्यक्तित्व को विकास कथा के अनुरूप प्रस्तुत किया है। चतुर्थ एवं पंचम अध्याय को हमने हमारे लक्ष्य के प्रमुख अध्याय माना है। फलत: संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश की एक एक जैन रामायण, पद्मपुराण, पउमचरियं पउमचरिउ जो कि क्रमशः आचार्य रविषेण आचार्य विमलसूरि आचार्य स्वयंभू के द्वारा रचित है, में राम के स्वरूप का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर निष्कर्ष रूप में जैन रामायणों में राम का स्वरूप कैसा है, यह वर्णन प्रकट किया गया है पंचम अध्याय में इन्हीं जैन रामायणों में राम के चरित्र के विशेष विभिन्न रूपों का जैसे अवसरवादी रूप, जन कल्याणकारी रूप समन्वयकारी रूप, मर्यादित रूप एवं शील, शांति एवं सौन्दर्य के प्रतीक राम का संक्षिप्त वर्णन लिखकर राम के सम्पूर्ण जीवन को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। - षष्ठम अध्याय के प्रथम भाग में रामचरित मानस और हमारे लक्ष्य की तीनों जैन रामायणों के मध्य तुलनात्मक वैशिष्ट्य में पहले दोनों की कथा में अंतर प्रस्तुत करने के पश्चात् चरित्र चित्रण के आधार पर अंतर प्रस्तुत किया गया है। इसी के दूसरे खंड में वर्तमान में हिन्दी जगत को जैन लेखकों के अवदान में निहित राम के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन श्वे. परम्परा के जैन मुनि सूर्यमुनि द्वारा रचित श्री जैन रामायण में राम के स्वरूप के द्वारा प्रस्तुत किया है। 106 - अंत में उपसंहार के रूप में जैन रामायणों का सामाजिक महत्व, उनका साहित्य में योगदान तथा शोध ग्रन्थ का निष्कर्ष लिखकर विराम दिया। Jain Education International 'रामत्व जहाँ हैं, वहीं संतुलित लोकतंत्र गर्वमय समृद्धि - सुख शान्ति, राम का राजतंत्र' For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन 14 (4), 2002 www.jainelibrary.org

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