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सामाजिक, सांस्कृतिक व न्यायिक वाद-विवाद के फैसले भी होने लग गए।
स्पेन देश के आक्रमण के बाद, स्पेनिश सिपाहियों ने इन मंदिरों को भारी क्षति पहुंचाई और समस्त मूर्तियां तोड़ डाली। इन सिपाहियों के साथ आने वाले मिसनरियों द्वारा अपने राजा को लिखे पत्र के अनुसार इन सिपाहियों ने महिलाओं के हाथ, पाव, स्तन काट कर उन्हें झीलों में फेंककर बहुत आनन्द मनाया बताते हैं। वहां के नागरिक देश छोड़कर भाग निकले और इसके बाद तो माया शासन कभी भी एकजुट नहीं हो पाया। शासक भी अपने पड़ोसी देशों के साथ गृहयुद्ध में फंस गये। इस प्रकार ईसा की 13 वीं शताब्दी तक माया सभ्यता का हमेशा के लिये अंत हो गया। इतिहासज्ञों के अनुसार यहां के शासक बहुत निर्दयी थे, यह निष्कर्ष उन्होंने इन खण्डहर मंदिरों में बने भित्ति चित्रों व दीवारों पर उकेरे गये दृश्यों के आधार पर निकाला। भू- गर्भ से ऐसे औजार व उपकरण प्राप्त हुये हैं जिनके द्वारा बच्चों व युवा पुरुषों के सिरों को शिकंजे में दबाकर एक-एक बूंद खून निकाल कर जानवरों को पिलाते थे। परन्तु मैं उपरोक्त निष्कर्ष से सहमत नहीं हूँ। भित्तिचित्रों पर तो नर्क इत्यादि का चित्रण जैन मंदिरों में आमतौर पर पाया जाता है। और यहां भी संभवतया नर्को का चित्रण ही हो। जो उपकरण प्राप्त हुए हैं वो अपराधियों को सजा देने के लिए हों। अत: वहां के शासकों को निर्दयी घोषित करना न्याय संगत नहीं लगता, खासतौर पर उन शासकों के लिए जिन्होंने इतने मंदिरों का निर्माण कराया है। कई जगहों पर वेधशालायें भी मिली हैं जिनसे पता चला है कि ये शासक बहत अच्छे गणितज्ञ थे और उन्हें ज्योतिष विद्या का अच्छा ज्ञान था। नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिकाओं में छपे लेखों में वर्णन व खण्डहर मंदिरों के चित्रों को देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि हो न हो इस माया सभ्यता पर जैन परम्परा का अवश्य प्रभाव रहा होगा। अत: इस संभावना की पुष्टि करने के लिए मैं लॉस एन्जलिस (अमेरिका) में दिसम्बर 1999 से फरवरी 2001 तक के प्रवास के दौरान 1 नवम्बर 2000 को 6 घंटे की उड़ान के बाद मैक्सिको के युकटन उपमहाद्वीप के कैन्कुन हवाई अड्डे पर पहुंचा।
कैन्कुन मैक्सिको का बहुत लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह स्थान वर्षभर गर्म मौसम, सदैव समुद्री हवाओं से आकर्षित सूर्यास्त दृश्यों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। गोताखारों, नाविकों व प्रमुख सभा, सम्मेलनों के लिए उचित स्थान है। युकटन उपमहाद्वीप के माया सभ्यता को अपनाये कैरेबियान समुद्री तट पर बसे इक्सकारेत, इक्सेल्हा, तलुम एवम् पश्चिम में स्थित चिचेन इटूजा, कोक्हा व उक्समहल इत्यादि के भ्रमण के लिए ठहरने का उचित स्थान है। चूंकि मेरे पास केवल दो दिन का ही समय था इसलिए मैंने केवल चिचेन इट्रजा ही देखने का मानस बनाया। 2 नवम्बर को कैकुन से करीब 120 कि.मी. पश्चिम में स्थित इटूजा बस के द्वारा पहुंचा।
चिचेन इटूजा की इमारते टोल्टेक क्षेत्रीय शैली की प्रतीक है। यहाँ एक सबसे ऊंचा पिरेमिड मंदिर है (चित्र- 1). जिसके चारों और सीढियां बनी हैं और करीब 120 फु की ऊंचाई पर एक मंदिर है जिसके चारों ओर परिक्रमा लगाने को गैलरी है। इस मंदिर की बनावट मुझे जैन शास्त्रों में वर्णित पांडुकशिला जैसी लगी जिसका उपयोग पंचकल्याणक महोत्सवों में भगवान के जन्म कल्याणक मनाने के लिए किया जाता है। इस मंदिर के उत्तरी भाग में 2 और पिरेमिड मंदिर हैं (चित्र-2) जिनकी ऊंचाई क्रमश: कम होती गई है। एक अन्य मंदिर की एक पश्चिमी दीवार पर 2 मूर्तियां बनी हैं जिन पर नाग का फण है। (चित्र - 3) ये ही एक मात्र स्थान है जो इस बात की संभावना प्रगट करता है कि माया सभ्यता जैन परम्परा से जुड़ी हो। इस मंदिर के पास ही सैकड़ों खंबे दिखाई
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अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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