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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष - 14, अंक - 4, 2002, 45 - 47 मांसाहार और आधुनिक विज्ञान
-डॉ. जगदीशप्रसाद*
मानवीय आहार
प्रत्येक प्राणी को जीवत रहने के लिये किसी न किसी प्रकार के भोजन की आवश्यकता होती है। आदि सृष्टि में ईश्वर ने जब मानव को उत्पन्न किया, उससे पूर्व ही उसने उसके लिये अनेक फल - फूल आदि उत्पन्न कर दिये थे, जिन्हें खाकर वह विकसित हुआ। बाद में, फल - फूल के साथ शाक - सब्जी (वैजीटेबल), अनाज और गो- दुग्ध को भोजन में सम्मिलित कर लिया गया। जब जनसंख्या वृद्धि के साथ मानव (आर्य) स्वर्ग (कश्मीर) से पृथ्वी के अन्य भागों में जाकर बसा, जहाँ फल - फूल आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे, तो उसने कुछ पशु-पक्षियों को मांस खाते देखकर, पहले कच्चा फिर भुना हुआ
और बाद में उबला हुआ मांस खाना प्रारम्भ कर दिया। इससे वह रूग्ण हुआ। बुद्धि के विकास के साथ विज्ञान का विकास हुआ। संसार में रूग्णता - अशान्ति आदि के मूल कारणों पर विचार करने की दृष्टि से मांसाहार को विज्ञान की प्रयोगशाला में परखा जाने लगा। इस दिशा में गत एक शताब्दी में इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि में सराहनीय शोध कार्य किया गया है। इस कार्य से निकले कुछ निष्कर्षों को प्रस्तुत करना वर्तमान लेख का उद्देश्य
स्वभावत: मनुष्य शाकाहारी प्राणी है। उसके दाँतों, नाखूनों, आँत, लार, आमाशयरस, स्वभाव, आदि मांसाहारी पशुओं से भिन्न है। आहार - निद्रा - भय - मैथुन तो पशु और मानव दोनों में समान हैं। मानवयोनि पाकर भी यदि सारा जीवन इन्हीं चार के लिये व्यतीत कर दिया तो मानव योनि की श्रेष्ठता क्या हुई? इन चार के अतिभोग से तो मानव अशरफ - उल - मखलूकात (संसार की सर्वश्रेष्ठ कृति) नहीं कहा जा सकता। अत: मानव जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिये और शान्ति प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि वह वैज्ञानिक तथ्यों को जीवन - व्यवहार में स्वीकार करें। मांसाहार से अनेक रोग
लंदन के डॉ. अलैक्जैन्डर हेग ने अपने शरीर पर अनेक प्रयोग करके 'यूरिक एसिड ऐज ए फेक्टर इन दि कोज़ेशन ऑफ डिजीज़' नामक एक ग्रन्थ लिखा। इस ग्रन्थ में उन्होंने लिखा है कि उनका वर्षों पुराना सिरदर्द किसी औषधि से ठीक नहीं हुआ जब तक कि उन्होंने अण्डा, माँस तथा मछली खाना पूर्णत: न छोड़ दिया। उनका कहना है कि मूत्र में यूरिक अम्ल के दो स्रोत हैं। पहला नाइट्रोजन युक्त भोजन द्वारा शरीर में उत्पन्न यूरिक अम्ल तथा दुसरा माँस, माँस सूप, माँस निष्कर्ष, चाय, काफी आदि द्वारा शरीर में पहुँचाया हुआ यूरिक अम्ल। इन वस्तुओं के सेवन से शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और अन्त में माईग्रेन तथा अन्य सम्बन्धित रोग उत्पन्न होते हैं। मांसाहार से रक्तदाब वृद्धि का रोग हो जाता है। मांसाहार से कोलेस्टेरोल की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ जाती है, जो अन्ततोगत्वा हृदय रोग का कारण बनती है, जिससे हृदयाघात की सम्भावना बढ़ जाती है। उन्होंने एक पचास वर्षीय मांसाहारी व्यक्ति का उदाहरण दिया है जिसे जीवन भर मिर्गी के दौरे पड़ते थे। मांसाहार के स्थान पर शाकाहार लेने से उसके ये दौरे समाप्त हो गये और शेष पच्चीस वर्ष के जीवन भर वह ठीक रहा।
* सेवानिवृत्त रीडर - रसायन शास्त्र, 15, कृष्णापुरी, मेरठ - 250002
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