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में सुरक्षित है। अन्यत्र भी कुछ जिनालयों में ऐसी ही प्रतिमाएं उपलब्ध हैं। इसी तरह की एक मूर्ति समीपस्थ जैन वन मंदिर समूह के कोष्ठ क्रमांक 13 में भी स्थापित है। इसी जिले के ग्यारसपुर ग्राम के वज्रमठ मंदिर के तृतीय गर्भगृह में भी ऐसी ही एक मूर्ति है। पुरातत्वज्ञ कनिंधम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है - "गडरमल मंदिर से प्राप्त मूर्ति एक लेटी हुई नारी व उसके समीप एक लेटा हुआ बच्चा'' - एक जैन मूर्ति है। यह माता त्रिशला एवं तीर्थकर महावीर की मूर्ति है। शैय्या के नीचे बने सिंह जैन मूर्तिकला के अनुरूप हैं। (एम.पी. डिस्ट्रिक्ट गजेटियर - विदिशा, सन् 1979)
गड़रमल मन्दिर - इस मंदिर के निर्माण के संबंध में एक रोचक लोककथा प्रचलित है। कहते हैं - "प्राचीन काल में ग्राम की समीपवर्ती पहाड़ी पर ग्राम का एक गडरिया अपनी भेडें चराया करता था। पहाड़ी पर स्थित गुफा से निकलकर एक भेड़ प्रतिदिन उसकी भेडों के पास चरती थी व संध्या समय उसी गुफा में वापस लौट जाती थी। गडरिया प्रतिदिन आश्चर्य से यह सब देखता रहता था। उसके मन में यह जानने की प्रबल उत्कंठा थी कि यह भेड़ किसकी है, कहां से आती है, कहां चली जाती है? अत: एक दिन उस भेड़ के पीछे - पीछे वह उस गुफा में गया। भेड़ तो गुफा में जाकर अदृश्य हो गई किन्तु प्रस्तर शिला पर ध्यानमग्न बैठे एक मुनिराज उसे दिखाई दिए। गडरिए ने उनसे कुछ कहा कि महाराज! में कई दिनों से आपकी भेड़ चरा रहा हूँ - मुझे इसकी चराई दीजिए। उन महात्मा ने बिना कुछ बोले, हाथ बढ़ाकर उसकी चादर के छोर पर कुछ डाल दिया जिसे गांठ में बांधकर वह गडरिया वापस चला गया।
अर्हत् वचन, 14 (4). 2002
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