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घर आकर उसने अपनी पत्नी को सारी घटना सुनाई चादर की गांठ खोलने पर उसमें मकई के कुछ दाने ही निकले जिन्हें उसकी पत्नी ने क्रोधवश, कमरे के एक कोने में रखे उपलों के ढेर पर फेंक दिया। दूसरे दिन वह जब उपले उठाने गई तो उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। जहां उसने उन मुनिराज से प्राप्त मकई के दाने फेंके थे उपलों का वह ढेर स्वर्ण में परिवर्तित हो चुका था। यह देख वे दोनों उस गुफा की ओर भागे किन्तु गुफा तो खाली थी वहां कोई नहीं था। कहा जाता है कि अकस्मात प्राप्त इसी धन से उस गडरिए ने इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। उस गडरिए के नाम पर इस मंदिर को गडरमल मंदिर कहा जाने लगा। आज तक वही नाम प्रचलित है।
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जैन वन मंदिर समूह गडरमल मंदिर से कुछ दूर एक घेरे के भीतर 25 देवकोष्ठ एक वृहदाकार सहन के चारों ओर निर्मित है। इन देवकोष्ठों का पृष्ठ भाग मिलकर एक परकोटे का रूप ले लेता है। यहां का प्रवेश द्वार छोटा है। कुछ मंदिरों के ऊपर शिखर हैं। मंदिर क्रमांक 9 का शिखर अन्य शिखरों की अपेक्षा अधिक ऊंचा है। यह प्रकोष्ठ अन्य कोष्ठों की अपेक्षा बड़ा भी है। इन देव कोष्ठों के मध्यवर्ती चौक में एक दीर्घाकार उन्नत मंडप है जिस की अलंकृत छत कलापूर्ण स्तंभों पर आधारित है। मंदिरों का बाह्य पृष्ठ भाग भी अलंकरण युक्त है। यहां बीच-बीच में कुछ मूर्तियां भी उत्खचित हैं।
दिगम्बर जैन वन मन्दिर समूह
यह मंदिर समूह एक चौबीसी मंदिर है। पच्चीस साधारण देव कोष्ठों में 19 कुछ अच्छी अवस्था में हैं। वर्तमान में प्रतिमाओं का कोई क्रम नहीं है। फिर भी अधिकांश तीर्थंकरों की प्रतिमाएं यहां स्थापित हैं। इनमें कुछ पद्मासन में हैं व कुछ खड्गासन में । इनकी कोई निश्चित ऊंचाई भी नहीं है। कुछ खड्गासन प्रतिमाएं 6 से 12 फुट तक ऊंची हैं। मुख्य मंदिर क्रमांक 9 में स्थापित तीर्थकर ऋषभनाथ की प्रतिमा 12 फुट ऊंची है प्रतिमा का कुछ निम्न भाग भूमि में दबा हुआ है। केशराशि कंधों पर लहरा रही
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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