Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 76
________________ है। आतताइयों द्वारा प्रतिमा के कुछ भाग खंडित कर दिए जाने के बावजूद प्रतिमा कलापूर्ण एवं भव्य है। मूर्तियों की कुल संख्या 44 है। मंदिर क्रमांक 13 में स्थापित तीर्थंकर माता की प्रतिमा विशेषरूप से उल्लेखनीय है यह प्रतिमा गडरमल मंदिर से प्राप्त तीर्थकर माता की प्रतिमा के अनुरूप है। इसमें माता शैय्या पर लेटी हुई हैं। समीप ही बाल तीर्थंकर भी लेटे हुए हैं। माता की सेवा हेतु आई हुई चार देवियां भी शिलाफलक पर उत्कीर्णित हैं। हरिवंश पुराण के अनुसार ये लचकप्रभा, रूपकामा, रूचिका एवं रूचिकोज्वला चार विद्युत कुमारियां हैं जो जिनेन्द्र के जात कर्म में सहायक करती हैं उनकी सेवा करती हैं। श्री बाहुबली की 8 फुट ऊंची एक प्रतिमा भी यहां है । यहां कोई शिलालेख प्राप्त नहीं हुआ है। दो मंदिरों के गर्भगृह की बाह्य प्रस्तर चौखट पर निम्न लेख उत्कीर्णित है " (1) ॐ स्वस्ति श्री द्वादस मंडले आचार्य केवलि: द्विजै भूपचंद्रस्य स... 3 सं. 1113, (2) स्वस्ति श्री देवचंद्र आचार्य मंत्रवादिन सं. 11341" इन लेखों से यह स्पष्ट है कि इन मंदिरों का निर्माण बारहवीं शताब्दी में हुआ था। जैन मंदिरों के अतिरिक्त दशमावतार आदि हिन्दू मंदिरों का कला सौष्ठव भी दर्शनीय पठारी ग्राम में प्रस्तर निर्मित एक विशाल प्राचीन एवं शिखरयुक्त भव्य जिनालय है। सन् 1635 ई. में एक जैन व्यापारी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के प्रस्तर स्तंभ एवं छत अलंकृत है। मूलनायक तीर्थकर भगवान ऋषभदेव की कायोत्सर्ग प्रतिमा 12 फुट ऊंची है। प्रतिमा पर नीचे निम्न आलेख उत्कीर्णित है - "संवत 1662 फाल्गुन सुदी 7 बुधे श्री मूलसंघे, सरस्वती गच्छे कुंदकुंदाचार्यन्वये भट्टारक श्री पद्मनंदि देवा, तत्पट्टे रत्नकीर्ति देवा अष्टशाखे गोहिल गोत्रे सरपंच नरसिंह पाण्डे तत्पुत्र शाह राहोत भार्या रूक्मिणि तत्पुत्र ....हल्के भार्या.... रत्न तत्पुत्र भगनीराज नित्यं प्रणमति चौ. रामचंद्र बाधोरा" - - 72 भगवान ऋषभनाथ के अतिरिक्त सन् 1414 में प्रतिष्ठित, कृष्ण पाषाण निर्मित दो मनोज्ञ तीर्थकर प्रतिमाएं और भी है। अनेक ताम्रपत्र एवं शास्त्र भंडार में कुछ प्राचीन ग्रंथ भी है। मंदिर के समीप ही एक कुंआ है, जिसमें लगे शिलालेख के अनुसार विदिशा निवासी विशुद्ध परवार जातीय, कौशल गोत्रीय उदयमान तुलाराम आदि ने इस कूप का निर्माण करवाया था। पठारी स्थित एक प्रस्तर में निर्मित चालीस फुट ऊंचा भीमगजा स्तंभ दर्शनीय है। प्राप्त : 20.06.2000 (प्रस्तुत आलेख स्व. श्री गुलाबचन्दजी जैन, विदिशा को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रकाशित है। सम्प्रति ये 02.07.2001 को हमारे बीच नहीं रहे।) Jain Education International For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 www.jainelibrary.org

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