Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 50
________________ डॉ. हेग का कथन है कि शरीर की माँसपेशियों की ऐंठन तथा वातोन्माद मूर्छा का मुख्य कारण मांसाहार है। उनका मत है कि मांसाहार को छोड़कर चाय या काफी आरम्भ करने से भी शरीर की ऐंठन या मूर्छा हो जायेगी। उनके अनुसार मांसाहार से मनुष्य की स्वार्थपरता आदि मानसिक त्रुटियाँ बढ़ने से व्यक्ति पागल तक हो सकता है। उनके प्रेक्षण की पुष्टि करते हुए डॉ. लांगे ने कहा है कि मांसाहार से मानसिक शक्तिहीनता रोग हो जाता है। मांस और मदिरा का चोली-दामन का साथ है। मांस के खाने के पश्चात् मदिरा की इच्छा को रोकना सम्भव नहीं और मदिरापान के पश्चात् मांस खाने की प्रवृत्ति को रोकना असम्भव है। फ्रांस के डॉ. जीन नुशबों का भी यही मत है। डॉ. हेग के अनुसार किसी को जब एक बार मांसाहार का चस्का लग जाता है तो चाय, काफी, सिगरेट की भाँति वह अधिक उत्तेजक की कामना करता चला जाता है, क्योंकि मांसाहार भोजन (न्यूट्रीशन) के रूप में नहीं, बल्कि उत्तेजक के रूप में कार्य करता है। भविष्य के स्वास्थ्य को गिरवी रखने के मूल्य पर वह वर्तमान में जिह्वा का स्वाद लेता है। डॉ. हेग ने लिखा है कि मांसाहार से कोष्ठबद्धता बढ़ जाती है, जबकि फलाहार से यह दूर होती है। डॉ. विलियम राबर्ट्स ने अपने एक प्रसिद्ध भाषण 'डायबेटिक्स एण्ड डिस्पेप्सिया' में कहा है कि मांसाहार में जोड़ों की सूजन तथा सन्धिवात गठिया नामक भयंकर रोग हो जाते हैं। पशुओं को वध करते समय, उनमें रहे यूरिक अम्ल विष, मौत के भय से उत्पन्न एडरीनालिन नामक विष अन्य त्याज्य तथा रक्त का निस्सार पदार्थ आदि माँस में मिल जाते हैं। इनसे युक्त माँस खाने वाले को गुर्दों की पथरी के रोग की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। 5 डॉ. हेग का मत है कि मछली और मांस में यूरिक अम्ल विष की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। इस विष के रक्त में मिलने से क्षय (टी.बी.), यकृत की बीमारी, श्वासरोग, रक्ताल्पता, गठिया, सुस्ती, अतिनिद्रा, अजीर्ण, अनेक प्रकार के सिरदर्द, इन्फ्लुएन्जा तथा अनेक प्रकार के ज्वर उत्पन्न होते हैं।" - डॉ. वाचमैन एवं डॉ. बन्स्टाइन की सम्मति के अनुसार, जिन व्यक्तियों की अस्थियाँ मांसाहार आदि के कारण दुर्बल हो गई हैं, उन्हें विशेष रूप से अधिक फलों के प्रोटीन तथा गाय के दूध का सेवन करना चाहिये और मांस बिल्कुल छोड़ देना चाहिये। आस्ट्रेलिया के डॉ. डी. के. डॉन ने 'वैजीटेरिएनिज्म दि बेस्ट डायट में गम्भीर चेतावनी दी है कि माँस खाने वालों के पेट में अट्ठारह मीटर लम्बा कीड़ा पाया गया है, अतः मांसाहार से बचना चाहिये। 7 46 - 'राइट फूड' में डॉ. ताल्बो (इंग्लैण्ड) का कथन है कि मांसाहार तो केवल नीच, असभ्य अथवा मूर्खों का ही भोजन हो सकता है मांस खाना तो अपने पेट को कब्रिस्तान बनाना है। MIT (यू.एस.ए.) के 'सेन्टर फॉर ब्रेन साइन्सेज़ एण्ड मेटाबोलिज्म' विभाग द्वारा शाकाहार और मांसाहार पर किये गये तुलनात्मक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि मांसाहार मनुष्य के शरीर की फिजियोलॉजी के अनुकूल नहीं है शरीर के अन्तर्गत सवित होने वाले विभिन्न प्रकार के हॉरमोनों तथा ऐन्जाइमों पर मांसाहार प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जो अन्ततः अनेक रोगों का निमित्त कारण सिद्ध होता है। फिलेडेल्फिया विश्वविद्यालय के डॉ. वर्टमन एवं सहयोगियों ने 1974 ई. में अनेक प्रयोगों के पश्चात् निष्कर्ष निकाला कि आहार की प्रकृति मस्तिष्क के जैव रासायनिक तत्वों तथा सोरोटिन, डोपामिन, नारएपिनिफ्रिन, एसिटाइल अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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