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वर्ष - 14, अंक - 4, 2002, 31-35 ( अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) कीट हत्या : कारण, प्रभाव तथा बचाव
अजित जैन 'जलज'*
आज जबकि मनुष्य हिसा के कुचक्र में फँसकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा है तब हिंसक मनोवृत्ति से निवृत्ति के उपायों पर चिन्तन मनन की महती आवश्यकता महसूस होती है। वैसे तो पूरा पर्यावरण विज्ञान जैन धर्म की सूक्ष्मतम अहिंसा का समर्थक है फिर भी धर्म और विज्ञान के अन्तर्सबंधों पर समुचित अनुसंधान अभी तक नहीं हो सका है।
जैनधर्म में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है परन्तु यह दुखद तथ्य है कि वर्तमान में अहिंसा को सर्व स्वीकार्य बनाने में अहिंसक अनुयायियों का योगदान अत्यल्प है। सूक्ष्मतम अहिंसा का नित प्रति ध्यान रखने वाले भी जाने - अनजाने बड़े बड़े जीवों की हत्या के लिये उत्तरदायी हो रहे हैं।
कीडों की हत्या एक ऐसा ही विषय है जिससे जैन समाज का एक बहुत बड़ा भाग जुड़ा हुआ है। प्रस्तुत आलेख में कीट हत्या निरोध के लक्ष्य से वैज्ञानिक तथा धार्मिक संस्तुतियाँ दी गयी हैं जिनके शोध एवं संवर्द्धन से अहिंसा महिमा मंडित हो सकती है। कीट हत्या के कारण :
प्रकृति में कीड़ों का अपना विशिष्ट महत्व है और प्रकृति में छेड़छाड़ करने से कई कीड़े हमारे लिये हानिकारक सिद्ध हुए हैं जिससे उनको मारने के लिये नित नूतन कीटनाशकों के आविष्कार हुए हैं। (अ) वैज्ञानिक कारण - 1. बहुत से पेड़ पौधों के लिये कई कीड़े बहुत घातक सिद्ध हुए हैं अत: फसलों की सुरक्षा तथा अधिक उपज पाने के लिये कीड़ों को मारा जाता है। 2. कीटनाशकों के बढ़ते दुष्प्रभावों को देखते हुए आनुवांशिक अभियांत्रिकी से ऐसे बीज विकसित किये जा रहे हैं जिनसे कीड़ों को नष्ट किया जा सकता है। बी. टी. कॉटन एक ऐसा ही नया कपास का बीज है जिसमें एक घातक जीवाणु का जीन डाल दिया गया है जिससे इसके पौधों में ऐसा जहर पैदा होता है जिन्हें खाकर कीड़े मर जाते हैं।' 3. मच्छर, मक्खी, तिलचट्टा, लूं आदि कीड़े मनुष्यों और पशुओं के लिये दुखदायी रहे हैं अत: इन्हें खत्म करने के लिये रसायनों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। (अ) धार्मिक कारण - 1. अब अधिकांश जैनों का मुख्य लक्ष्य अधिकाधिक अर्थ संचय हो गया है जिसमें साध्य साधन शुद्धि, जीवदया तथा करुणा का ध्यान विस्मृत हो गया है फलस्वरूप अर्थोपार्जन के लिये जैन व्यापारी भी कीटनाशको के व्यापार में जुड गये है। 2. जिस प्रकार से पर्यावरण वैज्ञानिकों की सलाह को अनसुना करके वृहद् वैज्ञानिक वर्ग विज्ञान का दुरुपयोग कर नित नूतन जहरीले रसायनों द्वारा कीड़ों को खत्म करने के नाम पर हवा, पानी में जहर फैला रहे हैं, उसी तरह सच्चे अहिंसकों को दर किनार कर जैन समाज का बहुसंख्यक वर्ग कीट हत्या, पशु हत्या आदि पर एकदम मौन बैठा हुआ
* अध्यापक, वीर मार्ग, ककरवाहा-472010 जिला टीकमगढ़ (म.प्र.)
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