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सिकन्दर महान तो अपने साथ मुनि कल्याण को अपने देश यूनान ले गया जिनको यूनानी जिनोसूफिस्ट कहते हैं। सिकन्दर ने अपनी दानवीय दिग्विजय की नृशंसता पर पश्चाताप किया और मरते समय कफन से बाहर दोनों हाथ बाहर रखने का आदेश देकर दुनियाँ को बता गया कि हिंसा से दुनियाँ को हड़पने की दुर्नीति दानवता है - मानव को उससे कुछ हाथ नहीं आता। अत: सच्चा शौर्य तो अहिंसक वीर लोक बनने में है।
सम्राट अशोक इसलिये महान नहीं हुए कि उन्होंने कलिङ्ग का दानवी युद्ध जीता, बल्कि उन्होंने अहिंसा का संदेश सारे भारत में और भारत के बाहर पड़ोसी देशों में भेजकर जग के हृदय को जीता, इस कारण अशोक महान बने। ईरानी बादशाह दारा ने भी असि के प्रचार के लिये शाही फरमानों को पत्थर पर अशोक और सम्प्रति की तरह लिखवाया। अहिंसा के कारण ही वे महान वीर जाते हैं। अहिंसा वीरता का अभेद्य दुर्ग है।
उपरान्त जब भारत की फूट को देखकर इंडोग्रीक विजेता भारत में मथुरा से आगे तक घुस आए थे तब भी भारत को उनके आतंक से मुक्त करने के लिए कलिङ्ग के सम्राट एल खारवेल आगे बढ़े थे। फल यह हुआ कि दमत्रयस (Demetrius) मथुरा छोड़कर भाग गया। यह सम्राट खारवेल परम अहिंसक जैन श्रावक था। अहिंसा का शौर्य इतिहास की स्वर्णगाथा है। इंडोग्रीक और कुषाण लोगों का प्राबल्य मथुरा में विशेष रहा जो जैन धर्म का केन्द्र था। जैनाचार्यों ने अनेक यवनों - ग्रीक, पार्थियन आदि को जैन धर्म में दीक्षित किया और असि का उपासक बनाया। उन्होंने अनेक मंदिर और मूर्तियाँ बनवाए थे, जो कंकाली टीला की खुदाई में मिले।
विदेशियों के साथ गंधी, माली, नट, गणिका आदि निम्न वर्ग के लोगों को भी जैनाचार्यों ने संघ में आदरणीय स्थान दिया था। उनके द्वारा प्रतिष्ठा कराई गई मूर्तियाँ भी मथुरा में मिली हैं। इस साक्षी से स्पष्ट है कि कुषाण काल में जैन धर्म जनता का जीता जागता धर्म था - उसके अनुयायी समाज के सभी वर्ग के लोग थे। जैन गुरुओं ने अहिंसा संस्कृति के रंग में सभी वर्ग के लोगों को सम्मिलित किया था जिससे समाज का नैतिक स्तर ऊँचा उठा था। गुप्त काल -
गप्त वंश के राजाओं ने यद्यपि पौराणिक वैदिक धर्म को प्रश्रय देकर उसे आगे बढ़ाया, तो भी जैन धर्म ने जन मन पर अधिकार जमाए रखा। गुप्त राजवंश में उसकी गति थी। प्रसिद्ध इतिहासकार हैवल का लिखना है कि - "ई. की तीसरी शताब्दी तक प्राय: सभी राजकीय अथवा जनसाधारण के दान जैन और बौद्ध संस्थानों को दिये जाते थे। यद्यपि नवीन वैदिक धर्म का इस समय उत्कर्ष हआ, फिर भी जनसाधारण में जैन और बौद्ध धर्म की प्रधानता अक्षुण्ण रही थी। जैन मंदिरों, मठों में उच्च कोटि की शिक्षा प्रदान करने का प्रबंध था। इन तीनों धर्मों के विद्वानों में दार्शनिक वाद भी हआ करता था। संस्कृत भाषा का महतीय उत्कर्ष हुआ था।'' 4 मुस्लिम काल -
अहिंसा धर्म भीरू नहीं बनाती, धर्म वीर बनाती है। गुप्तकाल और राजपूत काल में जैन और बौद्ध अहिंसा का स्थान पौराणिक हिन्दू धर्म ने ले लिया। राजपूतों का अहंकार इतना बढ़ गया कि वे आपस में लड़ने लगे। कदाचित जयचन्द देशद्रोह न करता तो वीरवर पृथ्वीराज मुसलमानों के हाथ न पड़ते। अभिमान के झूठे भाव ने भारतीयों को भीरू बना दिया और मुस्लिम शासन को जन्म दिया। जब सैय्यद सालारजंग अवध को जीतने के
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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