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पशु यज्ञों का विरोध किया। भगवान राम ने अहिंसा को बढ़ाया।
जब शौरीपुर में बाइसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि का जन्म हुआ, जो नारायण कृष्ण के चचेरे भाई थे, उस समय भारत में आमिषभोजियों की संख्या बढ़ रही थी। गोधन पर संकट आया हुआ था। तब अरिष्टनेमि ने शाकाहार अथवा फलाहार का प्रचार करके अहिंसक भाव को जनता के हृदय में जगाया। नारायण कृष्ण ने गोधन बढ़ाने के लिये लोगों को प्रोत्साहन दिया इसका प्रसार गुजरात में द्वारिका तक हो गया। भगवान नेमि की अहिंसा का प्रभाव गुजरात में देखा जा सकता है यहां की साधारण जनता निरामिष आहारी है, बड़ी दयालु है। वहां की अहिंसा के परिणाम स्वरूप ही भारत को महात्मा गांधी जैसा महात्मा मिला, जिनकी माता जैनी और पिता वैष्णवी थे। जैन कवि श्रीमद् रायचन्द से जिन्होंने अहिंसा का पाठ पढ़ा और अहिंसा की शक्ति को दुनिया में चमका दिया ।
ऐतिहासिक काल के आदि में -
तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय से भारत में ऐतिहासिक काल की गणना की जाती है । यद्यपि मोहनजोदडों और हडप्पादि का पुरातत्व भारतीय इतिहास की रूपरेखा को ईस्वी पूर्व 4000 वर्ष तक ले जाता है। पार्श्वनाथ के समय में वैदिक सम्प्रदाय में पुत्रेषणा, लोकेषणा और वित्तेषणा के लिये हिंसामूलक यज्ञ किये गये तथा शरीर को केवल कष्ट देने को ही तप माना जाता था। पार्श्वनाथ ने हिंसा, अस्तेय, चोरी और परिग्रह का त्याग करना सिखाया। इसका उन्होंने भारतभर में प्रचार किया। इतने प्राचीनकाल में अहिंसा को इतना सुव्यवस्थित रूप देने का यह सर्वप्रथम उदाहरण है। ईस्वी सन् से आठ शताब्दी पूर्व जब भगवान पार्श्वनाथ ने उपदेश दिया था वह काल अत्यन्त प्राचीन है और वह उपनिषद काल, से भी प्राचीन ठहरता है। 3
महाभारत के युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत अनैक्य, और अहंकार की हिंसक भट्टी में जल रहा था । बलिवेदियाँ निरपराध पशुओं के रक्त से रंजित थी, इतनी नृशंसता ही नहीं, बल्कि मानवों में ऊँच-नीच का ऐसा आतंक छाया हुआ था कि शूद्र और स्त्री के वैयक्तिक जीवन का कुछ मूल्य ही नहीं था। ऐसे हिंसक समय में तीर्थंकर महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने अहिंसा धर्म का विज्ञान सिद्ध पाठ मानवों को पढ़ाया "जिओ और जीने दो, सबसे प्रेम करो और सेवा धर्म का पालन करो।" उसी समय में भगवान गौतम बुद्ध ने अहिंसा का पक्ष लिया। परिणामतः भारत में एकता का भाव जागा । सभी छोटे छोटे राज्य मगध के शासन के अंतर्गत आ गए और संगठित हुए। अनेक राज्यों के शासकगण भगवान महावीर के अनन्य भक्त हो गये। उन्होंने अहिंसा दर्शन को अपने जीवन में उतारा।
भगवान महावीर के बाद - ई. पूर्व 527 में भगवान महावीर का निर्वाण पावापुर (बिहार) में हो गया उनके अनुयायी आचार्यो, मुनियों, आर्थिकाओं और श्रावकों ने सारे भारत में एवं भारत के बाहर अफगानिस्तान, अरब ईरान एवं यूनान तक अहिंसा संदेश फैलाया जैनाचार्य जानते थे कि मानव जीवन में शासन सत्ता का विशेष महत्व है, अतः उन्होंने सदा ही यह प्रयत्न किया कि वे शासन को अहिंसा तत्व से प्रभावित करें। तदनुसार जैनाचार्यों के प्रभाव में नंद और मौर्य वंश के अनेक राजा जैसे नन्दिवर्धन, महापद्म, चन्द्रगुप्त मौर्य रहे चन्द्रगुप्त और महापद्म तो स्वयं जैन मुनि होकर लोक कल्याण में लगे थे 'मुद्राराक्षस नाटक' से स्पष्ट है कि उस समय जैन मुनियों का जन जीवन में बड़ा प्रभाव था । वे साधारण कुटियों से लेकर राजप्रासाद तक अहिंसा का उपदेश देते हुए विचरते थे।
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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