Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 41
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर, अपने शत्रु के प्राण ही कर्त्तव्य हो सकता है अहिंसा का शौर्य हैं वे अहिंसक बनें। यह निश्चित तथ्य है।' हंता के प्रति भी प्रेम करना एक महान अहिंसक वीर का वही उसे माफ कर सकता है। यह है अहिंसा की महानता, जो मानव को अमर बना देता है अतः जो अमर जीवन चाहते अहिंसा में अमरता है और हिंसा में मरण । अहिंसा जयति सर्वथा । - af-14, 3-4, 2002, 37-40 अहिंसा इतिहास के आलोक में रामजीत जैन* - प्रागैतिहासिक काल के इतिवृत्त को जानने के लिये दो साधन हैं 1. धर्म शास्त्र और 2. पुरातत्व, और दोनों से ही यह बात सिद्ध होती है कि आदिकाल का मानव अहिंसक था। धर्मशास्त्रों के अनुसार तो मनुष्य ही नहीं पशु भी अहिंसक था। मानव और पशु साथ- साथ रहते थे। जैनियों के महापुराण, बौद्धों के सुत्तनिपात और ब्राह्मणों के रामायण से यही पता चलता है एवं इंजील और कुरान में भी आदम और हव्वा का वर्णन यही बताता है। चीन के कनफ्यूशंस ने भी यही कहा है। धर्मशास्त्रों का यह मत स्पष्ट है कि आदिमानव अहिंसक था, निरामिष भोजी था। बाद में अहंकार के कारण उसका पतन हुआ, और वह हिंसक बना। पुरातत्व की साक्षी Jain Education International पुरातत्व से प्राप्त सामग्री भी आदिकालीन मानव को अहिंसक सिद्ध करती है। मोहनजोदड़ों की खुदाई में सर्वप्राचीन स्तर पर केवल अन्न और फसल काटने के हंसिए मिले। उससे भी प्राचीन काल के चिन्ह मेसोपोटामियों के क्रेटे (Crete) नामक स्थान की खुदाई में मिले हैं, उनसे भी आदिकाल में मानव की अहिंसक वृत्ति का समर्थन होता है वहाँ से प्राप्त और ना ही नगर की सुरक्षा हेतु प्राचीर में मिले हैं। इसलिए पुरातत्त्वविद् इलियट "जब तक मानव ने खेती और सिचाई प्राचीन स्तर पर कोई भी घातक अस्त्र नहीं मिला बनाने के चिन्ह मिले हैं। ऐसे चिन्ह परिवर्ती काल स्मिथ (Eliat Smith) ने निर्धारित किया है कि करना नहीं सीखा था तब तक विश्व में सुख और शान्ति का स्वर्ण युग था। 2 उस अहिंसक युग में मानव भय और कायरता को जानता ही न था । कैलाश के उत्तुंग शैल से अहिंसा का निनाद सारे लोक में फैला और उसने एक दीर्घकाल तक मानव हृदयों पर अपना प्रभाव बनाये रखा। किन्तु भगवान रामचन्द्र के समय से जब बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का अवतरण होने वाला था, तब भारत में कुछ असुर लोग आ घुसे उनकी पाशविक वृत्ति थी, जादू टोने के धनी थे और सुरासुन्दरी के सेवक। उन्होंने भारतीय ब्राह्मणों में से कुछ को बहका लिया वेदों की ऋचाओं के मूल अर्थ को बदलकर उन्होंने पशु बलि प्रथा को जन्म दिया तीर्थकरों ने इसका घोर विरोध किया। भगवान राम ने अहिंसा को बढ़ाया। लेकिन उस समय से भय और आतंक का बाहुल्य हो गया। मनुष्य कायर बना। अपने साथियों से लड़ने झगड़ने लगा। भयग्रस्त हुआ । कायर मनुष्य तो अहिंसा का पालन नहीं कर सकता। वह तो अपने शरीर के मोह और स्वार्थ में अंधा हो रहा होता है। इसके विपरीत अहिंसक समरसी वीर शेरों से खेलते हुए भी नहीं डरता। दुष्यन्त शकुन्तला का पुत्र शेर के बच्चों के साथ खेलता था। यह था प्रागैतिहासिक काल में अहिंसा का प्रभाव । तीर्थंकरों ने अहिंसा का प्रचार किया, * एडवोकेट, टकसाल गली, दानाओली, ग्वालियर (म.प्र.) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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