Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 44
________________ लिये गायों के झुन्ड को आगे रखकर बढ़ता हुआ श्रावस्ती (बहराइच) पहुँचा तो उस समय वहां जैन राजा सुहेलदेवराय शासनाधिकारी थे। उन्होंने अहिंसा का तात्विक रूप समझा। अत: उन्होंने गायों को तितर - बितर करके सालारजंग को मार भगाया। बादशाह अकबर इसलिये महान माना गया कि उसने अहिंसक जीवन अपनाया। पशु-पक्षियों तक को अभयदान दिया था। अकबर से पहले सम्राट अमोघवर्ष, कुमार पाल और महाराजा राजसिंह ने भी अहिंसा ध्वज को ऊँचा किया था। परिणामत: तत्कालीन भारत लोक में सुख समृद्धि और शौर्य के लिये प्रसिद्ध रहा था। राजपूतों का शौर्य जहां पारस्परिक स्पर्धा - हिंसा के कारण कुण्ठित रहा, वहाँ भी अहिंसा के कारण वह शौर्य सोने में सुगन्ध की उक्ति को भी चरितार्थ करता रहा। पन्ना धाय का त्याग इसी कोटि का था। यह निस्पृह, निर्मोह भाव ही महान है। पन्ना ने साहसपूर्वक शिशु राणा को बचाया और उस राणा शिशु को लेकर सरदार राजपूतों के द्वारों पर अलख जगाया, परन्तु किसी को आश्रय देने का साहस नहीं हुआ। आखिर पन्ना कमलमेर दुर्ग के शासक आशाशाह के पास पहुँचती है, जो जैन धर्मोपासक अहिंसक वीर था। उसने नि:शङ्क होकर शिशुराणा को दुर्ग में आश्रय दिया। इसे कहते हैं सच्चा, जो अहिंसा का जीता जागता प्रभाव था। एक अहिंसक हृदय में ही निर्ममता और निर्मोह का वास हो सकता है। वही जीव रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे सकता है। भारत के सत्याग्रह युद्ध में अहिंसक सत्याग्रहियों ने छाती पर गोलियाँ खाई, परन्तु ऊँगली तक न उठाई ? इस अहिंसक शौर्य ने भारत को मुक्त कराया। और वर्तमान में भी अहिंसा की अमोध शक्ति का प्रभाव विदेशों में फैल रहा है। निष्कर्ष - जब यह नितान्त सत्य है कि अहिंसा जीवन का मौलिक तत्व है - वह हमारा आत्मिक रूप है, तब हम उसे भूलाकर जीवन में सफल नहीं हो सकते। क्योंकि अहिंसा के शासन में मनुष्य अपने लिये नहीं जीता - अपने स्वार्थ को आगे रखकर वह जीवन में आगे नहीं बढ़ता। बल्कि जीओ और जीने दो के सिद्धान्त को मूर्तमान बनाकर एक विशाल समाज को जन्म देता है जिसमें सर्वत्र समता, सुख और शान्ति का साम्राज्य होता है। महावीरों का धर्म ही अहिंसा होता है - और वे सच्चे लोकजयी होते है - युगों युगों की जनता युगों युगों तक ही नहीं सर्वदा अहिंसक महावीरों के आगे नतमस्तक होती सन्दर्भ 1. एक हंगेरियन कविता का हिन्दी रूपान्तर. 2. The Evolution of Man. p. 13. 3. डॉ. हरमन जैकोबी, परिशिष्ट पर्व, पृ. 6. 4. History of Aryan Ruie in India, p. 147-156. प्राप्त - 15.10.2000 40 अर्हत् वचन, 14(4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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