Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 37
________________ बात प्रत्येक कीटनाशक तथा कीड़ों के लिये लागू होती है। 6. बी.टी. कॉटन के हानिकारक जीव अन्य पौधों में पहुँचकर जीव जन्तुओं को हानि पहुँचायेंगे तथा कुछ ही वर्षों में कीड़े इन बीजों तथा पौधों के लिये प्रतिरोधी हो जायेंगे जिससे यह तकनीक भी व्यर्थ हो जायेगी। 7 (ब) धार्मिक प्रभाव - 1. कीटनाशकों के निर्माण, विक्रय, उपयोग में संलग्न जैन धर्मानुयायी धार्मिक, सामाजिक मंचों पर लगातार प्रतिष्ठा पा रहे हैं। गर्भपात, कत्लखानों, मद्यपान, धूम्रपान के संवर्धकों, संरक्षकों की तरह कीट हत्या के लिये उत्तरदायी जैनियों के बढ़ते मान सम्मान से ऐसी विडम्बना बनी है कि बुद्धिजीवियों के मन में जैनियों के क्रियाकाण्डी तथा पाखण्डी होने की धारणा विकसित हो रही है। 2. चींटी को भी न मारने वाले के रूप में पहचाने जाने वाले जैन भी जब फसल में कीटनाशी, मच्छर मारकों, काँकरोंच नाशियों का उपयोग करते एवं कराते पाये जाते हैं तो हमारा यह आचरण देश, समाज एवं धर्म के लिये गलत संदेश देता है। 3. कीट हत्या मारक मनोवृत्ति का निर्माण कर असहिष्णुता, अलगाव द्वन्द और हिंसा की आत्मघाती राहें बना रही हैं। कीट हत्या से बचने के उपाय : कीड़ों के कत्ल के द्वारा हम कीड़ों के कष्टों से कभी भी छुटकारा नहीं पा सकते हैं बल्कि ऐसे बहुत से वैज्ञानिक उपाय हैं जिनके उपयोग से कीट हत्या से आसानी से बचा जा सकता है 1. एक बड़े क्षेत्र में एक ही फसल बार बार लेने से उसके ऊपर निर्भर रहने वाले हानिकारक कीटों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है अत: इनकी संख्या को रोकने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि एक से अधिक प्रकार की फसलों को पास पास बोया जाये तथा उस क्षेत्र में नियमित अन्तराल से फसलों को परिवर्तित किया जाये। फसल चक्रण के इस उपाय से कीट नियंत्रण के साथ ही फसलों की पैदावार भी अधिक होगी। 2. एक से वृक्षों को भी एक साथ नहीं लगाया जाये कान्हा के साल वन में साल वृक्षों के एक साथ लगे होने के कारण वहाँ पर एक महामारी से लाखों पेड़ नष्ट हो चुके हैं अत: फल तथा इमारती वृक्षों की विभिन्न प्रजातियों को मिला जुलाकर बोया जाये । 3. प्रकृति हमेशा प्राकृतिक रूप से अधिक सक्षम प्रतिरोधी प्रजातियाँ पैदा करती ही रहती है अतः ऐसी प्रजातियों के बीजों का ही अधिकाधिक उपयोग किया जाये। 4. प्रयोगशालाओं में संकरण के द्वारा या फिर जैव प्रौद्योगिकी के द्वारा भी ऐसे बीजों का विकास किया जा रहा है जो कि प्राकृतिक रूप से अधिक सक्षम एवं कीट प्रतिरोधी हों परन्तु ऐसे पौधे कीड़ों को मारने वाले नहीं बल्कि कीड़ों से बच जाने वाले होना चाहिये । 5. बहुत पहले से हम नीम जैसे वनस्पति उत्पादों का प्रयोग करते रहे हैं जिनके द्वारा कीड़ों से बचाव होता रहा है आज भी हम ऐसे कीट विरोधी निरापद उत्पादों का अनुसंधान कर सकते हैं जो कि अन्य जीव जन्तुओं तथा कीड़ों से बचाव के लिये सहायक हो सकते हैं। नींबू घास, पिपरमेंट, तुलसी वच, काली मिर्च, पोंगामिया आदि पौधों से प्राप्त रसायनों अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only 33 www.jainelibrary.org

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