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है जिससे सुबह शाम के पूजन पाठ के बीच में ना जाने कितने निर्दोष प्राणियों का कत्ल नि:संकोच हो रहा है। 3. प्रतिक्रियावादी, ऐकान्तिक, हिंसात्मक मनोवृत्ति प्रत्येक विकार के लिये जिम्मेदार होती है। अपनी सुविधा के लिये दूसरे पशु-पक्षियों, कीड़ों को मारने का काम सदा से होता रहा है। जीव हत्या को धर्म, विज्ञान तथा मनुष्य हित के नाम पर सही सिद्ध करने का प्रयास सदियों से हो रहा है और आज हिंसा के कारण ही फैली हिंसा की आग में घिरा मनुष्य यह नहीं सोच पा रहा है कि क्रूरता, आतंकवाद का मूलभूत कारण कत्लखानों, कीटनाशकों इत्यादि के द्वारा होने वाला प्राकृतिक असंतुलन है। यह अनभिज्ञता ही अन्य मूक प्राणियों तथा कीड़ों के कत्ल का कारण है। कीट हत्या के हानिकारक प्रभाव :(अ) वैज्ञानिक प्रभाव - 1. पेड़ पौधों की ऐसी बहुत सी प्रजातियाँ हैं जो किसी ना किसी रूप में कीड़ों की प्रजातियों से जडी हई हैं। एक विशिष्ट पौधे के परागण (फूल से फल तथा बीज बनाने का महत्वपूर्ण चरण) में विशिष्ट कीट संलग्न रहता है। अत: एक विशेष कीट प्रजाति की समाप्ति के साथ ही उस पौधे की प्रजाति भी सदा के लिये समाप्त हो जाती है। 2. कीट वर्ग जीवन के विकास का एक महत्वपूर्ण सोपान है और वैज्ञानिकों के अनुसार इसी सोपान से गुजरकर ही विभिन्न विकसित जातियों, पशुओं और मनुष्यों का विकास हुआ है। इसके अतिरिक्त जैव विविधता, प्राकृतिक संतुलन के लिये प्रत्येक जीव प्रजाति का अपना अलग महत्व होता है। अतएव कीट हत्या वैज्ञानिकों के विवेचन के लिये तो नुकसान देय ही हो जाती है, हर जीव तथा मनुष्य के लिये भी अन्ततः हानिकर होती है। 3. कीटनाशक बहुत जहरीले रसायन होते हैं तथा इनसे बहुत से भयानक रोग फैल रहे हैं। वायु, जल, तथा मृदा को प्रदूषित कर रहे हैं :(क) डी.डी.टी. की थोड़ी सी मात्रा ही यकृत के बढ़ने का कारण होती है तथा मस्तिष्कीय
उत्तेजना उत्पन्न करती है। (ख) ऑरगेनो फास्फोरस यौगिक - त्वचा, श्वसन तंत्र व पाचन तंत्र द्वारा बहुत तेजी से
अवशोषित होते हैं जिससे एंजाइम तंत्र प्रभावित होता है। तंत्रिका तंत्र में एसीटाइल कोलीन संग्रहीत होने से मानसिक तनाव एवं अवसाद हो जाता है जिससे मनुष्य की
मृत्यु हो जाती है। (ग) विश्व में प्रतिवर्ष 20 लाख व्यक्ति कीटनाशी विषाक्तता से ग्रसित हो जाते हैं जिनमें
से लगभग 20 हजार की मृत्यु हो जाती है। 4. कीटनाशक - फसलों, फलों आदि में जमा होते रहते हैं। जैविक सांद्रता की इस प्रक्रिया के द्वारा मछली जैसे जीवों में तो इन जहरीले रसायनों की मात्रा लाखों गुना हो जाती है। इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 129 रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। 5. डी.डी.टी. जैसे हानिकारक कीटनाशक मच्छरों का कभी सफाया नहीं कर सके क्योंकि प्राकृतिक चयन के द्वारा बड़ी जल्दी ही मच्छर इन रसायनों के प्रतिरोधी हो गये। यही
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अर्हत् वचन, 14(4), 2002
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