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अवस्थाओं में ऐसी अनुक्रिया से वांछित लक्ष्य की प्राप्ति में मदद मिलेगी। बान्डुरा ने आक्रामकता के तीन स्त्रोतों का उल्लेख किया है निर्देश प्रयास व भूल तथा अवलोकन आक्रामक व्यवहार को कुंठित अनुभव, निर्देश अवलोकन तथा प्रोत्साहन व पुरस्कार मिलने की आशा से उत्तेजना मिलती हैं। आक्रामक या हिंसक व्यवहार या तो स्वयं को संतोष मिलने के कारण या बाह्य पुरस्कार अनुमोदन, कष्ट से मुक्ति के कारण बलशाली होता है। "
आतंकवाद को बढ़ावा देने में जनसंचार के माध्यम जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाओं, फिल्म, दूरदर्शन व इंटरनेट की भी अहम भूमिका हैं।
5. वंचित समूह
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मानव निर्मित परिस्थितियों ही आतंकवाद का आधार होती हैं। जब कोई भी मानव समूह समाज में अधिक शिक्षा, संपन्नता, शक्ति या संख्या के आधार पर अधिक प्रभावशाली बने समूह द्वारा निरंतर प्रताड़ित, वंचित अथवा दमित होता हैं, या ऐसा महसूस करता है, जब उसे अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति से वंचित कर दिया जाता है, उसे विश्वास में नहीं लिया जाता है एवं उसे न्याय पाने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती हैं तो निरूपाय, असहाय हो वह निराशावश आत्मघाती आतंकवाद की शरण में चला जाता है। जीवन यापन के साधन, संस्कृति, मान्यता से बलपूर्वक वंचित होने वाला समूह अपने आपको निर्मम अत्याचार का शिकार महसूस करते हुए आतंकवाद की ओर आकर्षित होता है।"
6. विशिष्ट व्यक्तित्व
आतंकवादियों में कुछ विशिष्ट व्यक्तित्व गुण एवं प्रवृत्तियाँ होती हैं। वे अहं - प्रतिरक्षात्मक प्रक्षेपण का बहुतायत से प्रयोग करते हैं। वे अपनी व्यक्तिगत न्यूनताओं और अक्षमताओं का कारण बाह्यजगत या बाह्य व्यक्तियों को मानते हैं। वे प्रतिरक्षात्मक महानता प्रदर्शित करते हैं अर्थात् दूसरों की भावनाओं की परवाह न कर स्वयं में ही लीन रहते हैं। इनकी विकृत पारिवारिक पृष्ठभूमि होने के कारण यह मुख्य रूप से दो प्रकार की अनुक्रियाएँ करते हैं। प्रथम, परिवार से पृथकीकरण होने के कारण परिवार से संबंधित सभी के प्रति आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं दूसरी इनमें स्थानापन्न परिवार के लिये तीव्र इच्छा उत्पन्न होती हैं क्योंकि संबंधन की आवश्यकता इनमें प्रबल होती हैं मनोवैज्ञानिक आघात तथा विशिष्ट व्यक्तित्व विशेषताओं के कारण वे समान विचार रखने वाले जो अपनी अक्षमताओं के लिये वातावरण को दोषी ठहराते हों, की तलाश करते है। ऐसे लोगों से इनकी संबंधन की आवश्यकता पूर्ण हो जाती हैं। इस प्रकार आतंकवादी समूह का सदस्य बनकर व्यक्ति स्वयं की भग्न सामाजिक पहचान को पुनः जोड़ने का प्रयास करते हैं आतंकवादियों में कुछ वैचारिक आतंकवादी होते हैं जैसे जर्मन रेड आर्मी या इटली की रेड ब्रिगेड्स। दूसरे प्रकार के आतंकवादी "राष्ट्रवादी अलगाववादी" होते है जैसे फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन।
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दुनिया भर में आतंक फैलाने वाले संगठन (लिट्टे) मानव बम के लिये ऐसे लोगों का चयन करते हैं जिनके पास जीने का कोई मकसद नहीं होता हैं, या जो गरीबी, बेरोजगारी, की मार से इतने हताश हो चुके होते है कि जीवन उनके लिये बेमानी हो चुका होता हैं, आतंकी उनमें नफरत का बीज बोकर एक मकसद तैयार करते हैं। ये व्यक्ति लक्ष्य पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं, नेता के प्रति समर्पण की भावना रखते हैं, पुनर्जन्म में इनकी कट्टर आस्था होती हैं मुसीबतों से छुटकारा पाना चाहते हैं, भावुक व कमजोर होते हैं, धर्मभीरू होने के कारण इनमें आत्मघात करने की इच्छाशक्ति ज्यादा होती हैं। यह व्यक्ति मशीनी मानव (रोबोट) की तरह होते हैं जिनकी कोई विचारशक्ति नहीं होती
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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