Book Title: Arhat Vachan 2002 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 32
________________ 7. प्राकृतिक आपदायें और हिंसा प्रकृति अपने विरुद्ध चल रहे क्रियाकलापों को एक सीमा तक ही सहन करती है और उसके बाद अपनी प्रबल प्रतिक्रिया के द्वारा चेतावनी दे ही देती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिकी के तीन प्राध्यापकों डॉ. मदन मोहन बजाज, डॉ. इब्राहिम तथा डॉ. विजयराज सिंह ने स्पष्ट गणितीय वैज्ञानिक गवेषणाओं द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दुनिया भर में होने वाली समस्त प्राकृतिक आपदाओं सूखा, बाढ़, भूकम्प, चक्रवात का कारण हिंसा और हत्याएँ हैं। (क) अहिंसा उन्नति के वैज्ञानिक उपाय 1. वृक्ष खेती अनेक वृक्षों के फल फूलों के साथ उनके बीज भी अच्छे खाद्य हैं। उनका उत्पादन 10-15 टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष होता है जबकि कृषि औसत उत्पादन 1.25 टन प्रतिवर्ष ही हैं। वृक्ष खेती में किसी प्रकार के उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती है। 36 इस तरह से वृक्ष खेती के द्वारा खाद्यान्न समस्या और जल समस्या का और भी कारगर समाधान तो होता ही है, यह विधि अहिंसा से अधिक निकटता भी लाती है। - 2. ऋषि कृषि जापानी कृषि शास्त्री मासानोबू फ्यूकुओका ने इस कृषि प्रणाली को जन्म दिया है। इसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि का बिल्कुल उपयोग नहीं किया जाता यहाँ तक कि भूमि में हल भी नहीं चलाया जाता है। बीज यूँ ही बिखेर दिये जाते हैं। खरपतवारों को भी नष्ट नहीं किया जाता है। इस प्राकृतिक खेती द्वारा फ्युकुओका ने एक एकड़ भूमि से 5-6 टन धान उपजाकर पूरी दुनिया को चकित कर दिया है। " अहिंसक खेती के प्रवर्तन पर इस जापानी महामना को मैगसेसे पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ द्वारा प्रतिपादित 'कृषि' की ही इस खोज (Research) को बढ़ावा देना क्या हम अहिंसक अनुयाइयों का कर्त्तव्य नहीं बनता है? महावीर, अहिंसा अथवा आदिनाथ की पावन स्मृति में स्थापित कोई पुरस्कार इस ऋषि तुल्य जापानी को क्या नहीं दिया जाना चाहिये ? 3. समुद्री खेती समुद्र की खाद्य श्रृंखला को देखने पर पता चलता है कि यहाँ पादप प्लवकों द्वारा संचित 31080 KJ ऊर्जा, बड़ी मछली तक आते आते मात्र 126 KJ बचती है। 39 ऐसे में यह विचार स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्यों ना भोजन के रूप में पादप प्लवकों का सीधे प्रयोग करके विशाल ऊर्जा क्षय को तो रोका ही जाये, हमारी 38 खाद्य समस्या को भी सरलता से हल कर लिया जाये। समुद्री शैवालों का विश्व में वार्षिक जल संवर्द्धन उत्पादन लगभग 6.5 x 1,00,00,000 टन है। जापान तथा प्रायद्वीपों सहित दूरस्थ पूर्वी देशों में इसके अधिकांश भाग का सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है समुद्री घासों में प्रोटीन काफी मात्रा में पायी जाती है इसमें पाये जाने वाले एमीनो अम्ल की तुलना सोयाबीन या अण्डा से की गई है। 39 मेरे मत से तो मछली पालन के स्थान पर पादप प्लवक पल्लवन' से अहिंसा, ऊर्जा एवं धन तीनों का संरक्षण किया जा सकता है। ( 4 ) मशरूम खेती फफूंद की एक किस्म मशरूम, प्राचीन समय से खायी जाती रही है। यदि मशरूम की खेती को प्रोत्साहित और प्रवर्तित किया जाये तो यह अंडों का उत्तम विकल्प बन सकती है। चूंकि इसका पूरा भाग खाने योग्य होता है, अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती है, रोशनी की अधिक आवश्यकता नहीं होती है, यह कूड़े करकट पर उग सकता है तथा खनिजों का खजाना होता है इसलिये यह आम आदमी का उत्तम नाश्ता अर्हत् वचन, 14 (4), 2002 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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