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अतिरिक्त किसी से नहीं डरता हैं। गांधीजी ने अहिंसावादी प्रतिरोधक में साहस तथा बहादुरी जैसे गुणों को आवश्यक माना हैं। इसी आधार पर अहिंसा के तीन स्तरों - बहादुर व्यक्ति की अहिंसा, कमजोर आदमी की अहिंसा (जो कि वांछित परिणाम न मिलने पर अहिंसा को त्याग दे) और भीरू व्यक्ति की निष्क्रियात्मक अहिंसा का उल्लेख किया गया हैं। इनमें से प्रथम गुण है व शेष दो अवगुण। आतंकवादी गतिविधियाँ हिंसात्मक प्रतिरोध से और बढ़ती हैं। यदि शक्तिशाली प्रतिरोध नीति अपनाई जाये तो हो सकता है कि आतंकवादी . संगठन विवश होकर कुछ समय के लिये अपनी क्रियाओं को रोक दे लेकिन उससे स्थायी हल नहीं हो पायेगा। आतंकवाद का मुख्य लक्ष्य लोगों में आतंक / भय उत्पन्न करना हैं। अत: आतंकवाद के प्रभाव को प्रभावहीन करने के लिये आवश्यक हैं कि जनता को आतंकवाद के प्रभावों के प्रति विसंवेदनाशील बनाया जाए। शासन यदि अपनी क्रियाओं को प्रतिरक्षात्मक बनाये रखे तथा आतंकवाद के प्रति उदासीनता या तटस्थता का प्रदर्शन करे तों आतंकवादी समूह / संगठन स्वत: नष्ट हो जायेगा। आतकवाद के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का मूल्यांकन करने हेतु आतंकवादी संदेशों के स्त्रोत की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का विश्लेषण, संदेश की विषय वस्तु का विश्लेषण, प्रभावित होने वाले समूह का विश्लेषण तथा संदेश संप्रेषण के स्त्रोतों का विश्लेषण आवश्यक है। अहिंसा का मनोविज्ञान - 1. स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता --
जब दो व्यक्तियों या समूहों के मध्य संघर्ष होता है तो प्रत्येक व्यक्ति या समूह अन्य व्यक्ति या समूह की स्वीकृति प्राप्त करने का इच्छुक होता हैं। आज व्यक्ति के समक्ष प्रमुख समस्या सम्मान प्राप्त करने की व स्वयं को शक्तिशाली सिद्ध करने की हैं। किसी भी संघर्ष में अपने देशवासियों तथा बाह्यराष्ट्रो की स्वीकृति आवश्यक होती हैं क्योंकि व्यक्ति को यह भय रहता है कि कहीं बड़ी गलती के कारण वह दूसरों की दृष्टि में अपने सम्मान को न खो दें। जब दो में से कोई एक अहिंसावादी तरीका अपना लेता है तो हिंसावादी तरीका अपनाने वाले का प्रयास व्यर्थ जाता हैं क्योंकि अहिंसक को मूकदर्शकों का समर्थन सहजता से प्राप्त हो जाता है। 2. अहिंसात्मक प्रतिरोध की श्रेष्ठता -
अहिंसात्मक प्रतिराध हिंसक व्यक्ति के लिये दृश्यात्मक साधन का कार्य करता हैं। आक्रामक व्यक्ति अहिंसावादी व्यक्ति की मूक भाषा (अवाचिक संप्रेषण) से प्रभावित होकर उसी के समान व्यवहार करने लगता है, अहिसावादी की निष्क्रियता हिंसावादी को आश्चर्यचकित कर देती है वह देखता है कि यह व्यक्ति न तो अपनी सुरक्षा के लिए कुछ कर रहा हैं न ही हिंसा की पीड़ा को प्रदर्शित कर रहा हैं परिणामस्वरूप हिंसावादी अपना पूर्ण ध्यान उस दिशा में केंद्रित कर देता है, अहिंसात्मक प्रविधि की श्रेष्ठता की ओर आकर्षण तथा हिंसक तरीकों के प्रति विकर्षण का भाव उत्पन्न हो जाता हैं। 'युद्ध भूमि में लहराते किसी भी शस्त्र की चमक से अधिक ओजस्वी होता हैं शांति के एक - एक कण से प्रवाहित प्रकाश। इस प्रकाश की ओर प्रवृत्त हो सराबोर हो और उसी में तलाशें भविष्य।' 3. अनुकरण की प्रक्रिया -
अनुकरणात्मक प्रक्रियाएँ जीवन पर्यन्त जारी रहती हैं। अहिंसक व्यक्ति हिंसक व्यक्ति के प्रति भी प्रम और करूणा का भाव प्रदर्शित करता है। वह इस बात की कामना करता
अर्हत् वचन, 14 (4), 2002
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