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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष - 14, अंक - 4, 2002, 15 - 24 आतंकवाद का मनोविज्ञान एवं अहिंसा के सिद्धांत की प्रासंगिकता
-डॉ. सरोज कोठारी*
सारांश हिंसा और आतंकवाद आज मानव समाज के लिए अभिशाप बने हुए हैं। आतंकवाद हिंसा के पेड़ पर लगा फल है व इसकी जड़े क्रोध, कामवासना, घृणा, द्वेष और आपसी दुश्मनी में हैं। आतंकवाद शब्द सुनते ही शरीर में सिहरन महसूस होने लगती हैं। इस शब्द में ही भय छपा हुआ है। आज आतंकवाद विश्वव्यापी समस्या बन चुका हैं, आतंकवाद सभी राष्ट्रों की अस्मिता के लिए खतरा बन चुका हैं। मनोवैज्ञानिकों ने आतंकवाद के मनोविज्ञान को प्रस्तुत किया हैं। मस्तिष्क के कुछ भाग व हार्मोन का स्त्राव आक्रामकता के लिये उत्तरदायी हैं। मृत्यु मूल प्रवृत्ति ही आतंकवादियों द्वारा प्रदर्शित हिंसा का कारण हैं। आक्रामकता सदैव किसी कुंठा का परिणाम होती हैं और कुंठा सदैव आक्रामकता को जन्म देती हैं। आक्रामकता या हिंसा सीखा गया व्यवहार हैं। जब कोई व्यक्ति स्वयं को वंचित महसूस करता है तो निराशावश वह आत्मघाती आतंक की शरण में चला जाता हैं। आंतकवादियों में विशिष्ट व्यक्तित्व गुण मौजूद होते हैं इनमें विध्वंस व निरंकुशता की प्रवृत्ति प्रबल होती हैं। आंतकवादी समूह व संगठन कुछ विशिष्ट विशेषताओं से युक्त होते हैं।
संसार में जब आतंकवाद का तांडव नजर आ रहा है तब ऐसी दशा में शांति की खोज करना स्वाभाविक हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अहिंसा के मनोविज्ञान का उल्लेख किया हैं। स्वीकृति प्राप्त करने की इच्छा, अहिंसात्मक प्रतिरोध की श्रेष्ठता तथा अनुकरण की प्रक्रिया के कारण ही व्यक्ति अहिंसक प्रविधि को अपनाता हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भगवान महावीर द्वारा बताया गया अहिंसा का सिद्धांत प्रासंगिक हैं। "जीओ और जीने दो" के संदेश को आत्मसात करने पर ही हिंसा के तांडव को समाप्त किया जा सकता है। हिंसा एक भावनात्मक बीमारी है। वह मानव की मानसिक अस्वस्थता का परिचायक है। मानव को स्वस्थ रखने के लिये आवश्यक है अहिंसा का प्रशिक्षण। शांति मानव की नैसर्गिक अवस्था हैं। मानव अस्तित्व के तमाम गौरवशाली अध्याय शांति के नाम दर्ज है, युद्ध के नाम नहीं। मनुष्य के श्रेष्ठतम गण शांति के दौरान ही उभरकर आते हैं। युद्ध भूमि में लहराते किसी भी शस्त्र की चमक से अधिक ओजस्वी होता है शांति के एक-एक कण में प्रवाहित प्रकाश। अत: हिंसक प्रवृत्ति को त्यागकर अहिंसा का मार्ग अपनाना ही विश्वशांति की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
* सहायक प्राध्यापक - मनोविज्ञान, शास्कीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर -452017 (म.प्र.)
निवास - 117, कंचनबाग, इन्दौर - 452001
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