Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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प्रकर्ता - सर्व संघ की वैयावृत्ति करने वाला हो।
आयापायविदर्शी - रत्नत्रय के धारण करने में लाभ और मायाचार के दोषों का कथन करके रत्नत्रय में स्थिर कर शिष्य के मायाचार को दूर करने वाला हो।
अवपीड़क - स्वकीय मधुर ओजस्वी वचनों के द्वारा क्षपक के दोषों को बाहर निकालकर निशल्य बनाने वाला हो।
अपरिस्रावी - क्षपक के द्वारा कथित दोषों को अन्य जनों में प्रकट नहीं करने वाला।
निर्वापक - शीत, उष्ण, भूख, प्यास आदि से पीड़ित होकर क्षुब्ध हुए क्षपक को स्थिर करने के लिए अनेक उपायों का ज्ञाता तथा उस क्षण को संसारलाई अनेक शामों का कथन करके उसके परिणामों को स्थिर करने वाला हो।
प्रसिद्ध - जो साधु और श्रावक गण में प्रसिद्ध हो। कीर्तिमान - जिसके धवल यश से सारा जगत् धवलित हो।
इत्यादि गुणों से युक्त ही निर्यापकाचार्य होता है। इस प्रकार के आचार्य को प्राप्त कर क्षपक मन, वचन, काय से उनके चरणों में समर्पित हो जाता है।
* समाधिसाधक - सामग्री का निरीक्षण या परीक्षण *
समाधि के इच्छुक क्षपक को मधुर वाणी से सान्त्वना देकर उसकी समाधि निर्विघ्नतया होने के लिए शुभाशुभ निमित्तों के द्वारा जानना और तत्रस्थ राजा-प्रजा कैसी है, इसकी परीक्षा करना भी आवश्यक है तथा सहायक वर्ग उत्साही है कि उदासीन है, उसका ज्ञान करना और क्षपक के परिणामों की परीक्षा करना भी निर्यापक का उत्तरदायित्व है।
दुलघ्य संसार समुद्र से पार होने के लिए क्षमा के समान कोई दूसरी निश्छिद्र नौका नहीं है अतः क्षपक को सबसे क्षमा कराते हैं और स्वयं सबको क्षमा करते हैं।
सर्व संघ की अनुमति से क्षपक को ग्रहण कर आचार्य क्षपक को उपदेश देते हैं कि हे क्षपक ! आप धैर्य के अवलम्बन पूर्वक सारी सुख-सुविधा का त्याग कर परीषह सेना को अंगीकार करते हुए समाधि धारण करो। पाँचों इन्द्रियों के विषयों पर विजय प्राप्त कर क्रोधादि चारों कषायों का उत्तम क्षमादि भावों के द्वारा निग्रह करो तथा तीन गारव को छोड़कर निशल्य होकर दोषों की आलोचना करके पाँच महाव्रत और मुनिचर्या को निर्दोष करो।
__ व्रतों की शुद्धि पर-साक्षी से ही होती है। जब तक गुरु की साक्षीपूर्वक आलोचना नहीं होती है तब तक व्रतों की शुद्धि नहीं होती। इसलिए आलोचना के दस दोष रहित गुरु की साक्षी पूर्वक अपने दोषों का कथन करके प्रायश्चित्त लेना चाहिए।